________________
'श्रमण परम्परा, अहिंसा एवं शान्ति' : 63 व्याख्यान के क्रम में डॉ0 सिंह ने आगमों के प्राचीन एवं वर्तमान वर्गीकरण का उल्लेख करते हुए अंग, उपांग, मूलसूत्र, छेदसूत्र, प्रकीर्णक और चूलिका सूत्रों का विशद् विवेचन किया। उन्होंने विभिन्न जैन सम्प्रदायों में मान्य आगमों की संख्या का विवेचन करते हुए आगमों की विषयवस्तु एवं उनकी टीकाओं का भी उल्लेख किया। 15. जैन पूजा पद्धति : यह व्याख्यान प्रो0 अशोक कुमार जैन, पूर्व विभागाध्यक्ष, जैन-बौद्ध दर्शन विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी का था। उन्होंने बताया कि जैन धर्म निवृत्तिमार्गी होने के साथ प्रवृत्तिमार्गी भी है, हालाँकि इस प्रवृत्ति का लक्ष्य भी निवृत्ति ही है। उन्होंने 'वन्दे तद्गुण लब्धये' को जैन पूजा पद्धति का उद्देश्य बताया। इस क्रम में प्रो० जैन ने इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए श्रमण एवं श्रावकों के लिए विहित षडावश्यक कर्मों का सविस्तार विवेचन करते हुए ध्यान एवं अध्ययन को श्रमणों का मुख्य कार्य बताया। श्रावकों के लिए विहित षडावश्यक कर्मों के उल्लेख के क्रम में देवपूजा एवं दान का विशद् विवेचन करते हुए देव पूजा के छ: भेद तथा बाह्य एवं अन्तरंग शुद्धि के भेद-प्रभेदों पर विस्तृत प्रकाश डाला। 16. जैन कोश साहित्य : यह व्याख्यान डॉ0 ओम प्रकाश सिंह, पुस्तकालयाध्यक्ष, पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी द्वारा दिया गया। उन्होंने कोश की परिभाषा एवं महत्त्व को प्रदर्शित करते हुए शब्द कोश एवं विषय कोश रूप द्विविध कोशों का विवचेन किया। पुनः भाषा के आधार पर कोशों का वर्गीकरण करते हुए संस्कृत भाषा के कोश एवं कोशकार के अन्तर्गत धनंजय की नाममाला, आचार्य हेमचन्द्र की अभिधान चिन्तामणि, अनेकार्थ संग्रह एवं निघण्टुशेष सहित संस्कृत भाषा के 20 अन्य कोशों, इनके रचनाकारों, रचनाकाल तथा विषय वस्तु पर विस्तृत प्रकाश डाला। प्राकृत भाषा के कोशों के अन्तर्गत धनपाल की पाइअलच्छीनाममाला, विजयराजेन्द्रसूरि की अभिधान राजेन्द्र कोश,