Book Title: Sramana 2014 07 10
Author(s): Ashokkumar Singh, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 40
________________ लक्ष्य संस्कृतकाव्यशास्त्र एवं प्राकृतकाव्यसाहित्य ... : 33 साहेन्ती सहि सुहअं खणे खणे दूम्मिआसि मज्झकए । सब्भावणेकर णिज्जसरिसअं दाव विरइअं तुमए ।। व्यङ्ग्य उअ णिच्चलणिप्पंदाभिसिणी पतम्मि रेहइ बलाआ । णिम्मलमरगअभाअणपरिट्ठिआ संखसुत्ति व्व । । " उपर्युक्त गाथों का काव्यशास्त्रीय वैशिष्ट्य सहृदयों के द्वारा सर्वथा बोधगम्य है, साथ ही प्रतीयमान- अर्थ व्यंजना व्यापार के द्वारा ध्वनित हो रहा है। मम्मटाचार्य ने तृतीय उल्लास में आर्थीव्यंजना निरूपण के क्रम में वक्तृवैशिष्ट्यात्, बोद्धव्यवशात् वाक्यवैशिष्ट्यात्, अन्यसन्निधिवशात्, प्रस्ताववैशिष्ट्यात्, देशवैशिष्ट्यात् एवं कालवैशिष्ट्यात् निष्पन्न होने वाले व्यङ्ग्यार्थ हेतु 'गाहासत्तसई' से छः गाथाएँ उद्धृत की हैं। यथा अइपिहुलं जलकुंभं घेत्तूण समागदहि सहि तुरिअं । समसेअ सलिलणीसासणी सहा वीसमामि खणं । । ओण्णिद्दं दोव्वल्लं चिंता........... अहह परिहवइ || तइआ मह गंडत्थलणिमिअं दिट्ठिणं ण णेसि अण्णत्तो । एहिं सच्चेअ अहं ते अ कवाला ण सा दिट्ठि ।। णोल्लेइ अणोल्लमणा.. ण व होइ वीसामो ।। सुव्वइ समागमिस्सदि तुज्झ पिओ अज्ज पहरमेत्तेण । एमे अ कित्ति चिट्ठसि ता सहि सज्जेसु करणिज्जं । । गुरुअणपरवस पिअ किं भणामि तुह मंदभाइणी अहकं । अज्ज पवासं वच्चसि वच्च सअं जेव्वसुणसि करणिज्जं । । उपर्युक्त गाथाओं में अर्थगत - व्यंजकता विद्यमान है । इन गाथाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि गाहासत्तसई ध्वनि-प्रधान काव्य है, अतएव ध्वनि-सिद्धान्त के प्रतिपादक आचार्य आनन्दवर्धन नें काव्यात्म ..........

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