Book Title: Sramana 2014 07 10
Author(s): Ashokkumar Singh, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 23
________________ 16 : श्रमण, वर्ष 65, अंक 3-4/जुलाई-दिसम्बर 2014 ज्ञात होता है कि विश्ववर्मन ने नदी तट पर बसे नगर से सिंचाई के लिए कूपों और तड़ागों का निर्माण करवाया। नदियों से छोटी-छोटी नहरें निकाली जाती थीं। तोसलि निवासी वर्षा के अभाव में नदियों और नहरों के पानी से खेत सींचते थे। जैन साधुओं के लिए पानी के उद्गम स्थलों, तालाबों, खेतों की ओर जाने वाली पानी की नालियों पर मलमूत्र त्याग करना वर्जित था।18 प्रायः कृषक सिंचाई हेतु पानी की चोरी भी कर लेते थे। निशीथचूर्णि में एक ऐसे किसान का वर्णन है, जो चुपके से दूसरे किसान की बारी पर अपने खेत में पानी ले लेता था। वसुदेवहिण्डी के अनुसार उग्रसेन का कुटुम्बी पुरुष रात में खेतों पर मेंड़ बांधकर पानी देता था। मेरूग्रामीण ने उसकी मेड़ तोड़कर अपने खेतों में पानी ले लिया। उग्रसेन ने राज्याधिकारी से इसकी शिकायत की। अपराध सिद्ध होने पर राजा ने मेरूग्रामीण को दण्डित किया। पानी की चोरी राजकीय अपराध था इसलिए ग्रामीण होने पर भी मेरू को अपने अपराध के लिए दण्ड भुगतान पड़ा। भिन्न-भिन्न देशों में भिन्न-भिन्न प्रकार के सिंचाई के साधनों का प्रयोग किया जाता था। वृहत्कल्प भाष्य के वृत्तिकार के अनुसार लाट देश में प्रमुख रूप से वर्षा के जल से सिंचाई होती थी। सिंधु देश में नदी के जल से, द्रविड़ में तालाब से तथा उत्तर भारत में कुँए के जल से सिंचाई होती थी। इसी प्रकार नदियों की बाढ़ के पानी से भी सिंचाई करने के उल्लेख प्राप्त होते हैं। कानन द्वीप में पानी की अधिकता के कारण नावों पर खेती होती थी। आज भी कश्मीर में डलझील में लकड़ी के पाटों पर मिट्टी डालकर खेती की जाती है, ऐसे खेतों को चलते-फिरते खेत कहा जाता है। . राज्य द्वारा की गई सिंचाई व्यवस्था का स्वरूप क्या था, इसका कोई विशेष उल्लेख जैन ग्रन्थों में प्राप्त नहीं होता है। वहीं अन्य स्रोतों से ज्ञात होता है कि राज्य की ओर से सिंचाई का समुचित प्रबन्ध किया जाता था। प्राचीन अभिलेखों और प्रशस्तियों में राजाओं द्वारा निर्मित जलाशय, कूप, वापी, प्रपा (प्याऊ), सरोवर, तड़ाग, आदि जल स्रोतों

Loading...

Page Navigation
1 ... 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122