Book Title: Sramana 2000 07 Author(s): Shivprasad Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi View full book textPage 5
________________ भी आपने अपना प्रवचन देकर पू. गणेश वर्णी जी के योगदान की प्रशंसा की जिससे दिगम्बर सम्प्रदाय आपकी सदाशयता से अभिभूत हो गया। जैनेतर समाज से भी आचार्यश्री ने स्नेहिल सम्पर्क स्थापित कर लिया है। संस्कृत श्लोक गायन प्रतियोगिता, भाषण आदि अनेक ऐसे कार्यक्रम हुए हैं जिनमें जैनेतर बन्धुओं ने खुले मन से भाग लिया है और आचार्यश्री के व्यक्तित्व को सराहा है। ___ सारनाथ, चन्द्रपुरी और भदैनी स्थित श्वेताम्बर मन्दिरों का भी जीणोंद्धार होना तय हो गया है। यह भी आचार्यश्री का ही योगदान है। चातुर्मास की अवधि में पार्श्वनाथ विद्यापीठ में आचार्यश्री का ससंघ शुभागमन कई बार हुआ। यह हमारा परम सौभाग्य रहा कि हमारे संस्थान का शैक्षणिक वातावरण उन्हें बहुत भाया। उन्होंने इसके साथ इतनी अधिक आत्मीयता जोड़ ली कि इसकी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वे सचेष्ट हो गये। 'यस्य देवस्य गन्तव्यं, स देवो गृहमागतः' वाली उक्ति चरितार्थ हो गई। वाराणसी आचार्यश्री का पधारना संस्थान के लिए एक अत्यन्त शुभ सङ्केत सिद्ध हुआ। उनका मेरे शिर पर विशेष आशीर्वाद है। जो भी मैंने संस्थान विषयक योजनाएँ आपके समक्ष प्रस्तुत की, उन सभी को उन्होंने न केवल बिना हिचक स्वीकार किया बल्कि उन पर कार्यान्वयन भी प्रारम्भ करा दिया। चातुर्मास प्रवेश होने के साथ ही आचार्यश्री कामनपार्श्वनाथ विद्यापीठ के विकास में लग गया। संस्थान में जिन तत्त्वों की आवश्यकता थी, उनसे उन्हें मैंने परिचित करा ही दिया था। तदनुसार उनकी प्रेरणा से चातुर्मास स्थापना दिवस समारोह में ही राजयशसूरीश्वर विद्याभवन तथा उपाध्याय यशोविजय स्मृति मन्दिर नाम से दो भवनों का निर्माण सुनिश्चित हो गया और आनन-फानन में उनके भक्त अनुयायियों | ने इस योजना को तुरन्त मूर्तिमान स्वरूप देने का संकल्प कर लिया। इस संकल्प की पूर्ति में बैन महाराजश्री का भी पूर्ण योगदान रहा। यहाँ हम विशेष रूप से श्री धर्मेन्द्र गांधी (बम्बई) के नाम का विशेष उल्लेख करना चाहेंगे जिन्होंने मेरे निवेदन पर क्षणभर में ५ लाख रुपये के अनुदान की घोषणा कर दी। तदर्थ मैं व्यक्तिगत रूप से उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता हूँ। इसी क्रम में अन्य महानुभावों का भी नाम उल्लेखनीय है जिन्होंने इस ज्ञानयज्ञ में अपनी किञ्चित् आहुति दी है। वे हैं: श्री रतनलाल मगनलाल देसाई, डॉ. किशोरभाई। शाह, श्रीमती मयूरी अजयभाई शाह, श्री अजित समदरिया आदि। १८वीं शती के सुप्रसिद्ध विद्वान्, गुजरात निवासी उपाध्याय यशोविजयजी का वाराणसी से सारस्वत सम्बन्ध रहा है। इस सम्बन्ध को चिरस्थायी बनाने के लिये आचार्यश्री ने पार्श्वनाथ विद्यापीठ में ही मेरे निवेदन पर यशोविजयजैनग्रन्थमाला स्थापित करने की बृहद् योजना बनायी, परन्तु संयोग से हम उसे समय पर कार्यान्वित न कर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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