Book Title: Sramana 1991 07
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 7
________________ पंचपरमेष्ठि मन्त्र का कर्तृत्व और दशवकालिक भवति, तम्हा पुण्णे वत्तव्वा णमो अरिहन्ताणं"।' चूर्णिकार ने भी नमोक्कार से 'णमो अरिहन्ताणं' पद द्वारा कायोत्सर्ग पूर्ण करने का अभिप्राय ग्रहण किया है । इसके अतिरिक्त 'शक्रस्तव' ( नमुत्थुणं ) सूत्र में भी सर्वप्रथम 'अरिहन्ताणं भगवन्ताणं' उच्चारण द्वारा नमस्कार किया गया है। 'चतुर्विशति स्तव' ( लोगस्स सूत्र) में चतुर्विंशति तीर्थङ्करों की स्तुति में अरिहन्तों का कीर्तन किया गया है। उक्त उद्धरणों से स्पष्ट है कि 'नमस्कार-मंत्र' की रचना सूत्र रूप में गणधर कृत मानी जा सकती है। साथ ही सिद्धापेक्षा उपकारी व निकट होने से प्रथम नमस्कार व प्रथम पद अरिहन्त को दिया गया है, यह भी स्पष्ट हो जाता है। ___ दशवैकालिक सूत्र में 'आचार-प्रधान' ग्रंथ होने से श्रमण जीवन सम्बन्धित आचार-धर्म की प्ररूपणा है । पंच-पद का मंत्र रूप से वर्णन इसमें नहीं है इनका उल्लेख इसमें अवश्य मिलता है । "नऽन्नत्थ आरहंतेहिं हेऊहिं आयारमहिट्ठज्जा" अर्थात् अर्हन्त हेतुओं के सिवाय अन्य किसी हेतु (उद्देश्य) को लेकर आचार का पालन नहीं करना चाहिए। 'अरिहन्त' शब्दमात्र से तो उल्लेख एक बार प्राप्त होता है किंतु 'चरम तीर्थंकर भगवान् महावीर ने इस प्रकार से प्ररूपणा की है' यह उल्लेख अन्य कई स्थलों पर किया गया है। पंचपरमेष्ठि मन्त्र के दूसरे पद 'नमो सिद्धाणं' का प्रश्न है इसका इस रूप में उल्लेख नहीं है । परन्तु इसमें सिद्धत्व की अर्हता और उपाय का निरूपण है। उल्लिखित है कि दुष्कर का आचरण करके तथा दुःसह को सहन करके कितने नीरज ( कर्मरज से रहित ) होकर सिद्ध हो जाते हैं । सिद्धिमार्ग को प्राप्त ( स्व-पर के ) त्राता, संयम १. आवश्यक सूत्र, भाग-२, पत्र २५३ २. वही, पत्र ३ ३. दश० अध्ययन-९।४ गा० ११ ४. दश० ४।१-३, ९।४।१, ९।४।२ ५. वही, ३।१४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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