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श्रमण, जुलाई-सितम्बर १९९१
इस प्रकार इस ग्रंथ में अरिहन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु इन पंच पदों का वर्णन विस्तृत रूप से किया गया है । पंचम पद-साधु पद अन्य सभी पदों में व्याप्त है। क्योंकि साधु ही उपाध्याय, आचार्य अरिहन्त एवं सिद्ध के स्वरूप को प्राप्त कर सकता है। नमस्कार मंत्र अथवा पंच पदों का विवेचन ही इस ग्रंथ का विषय हो, ऐसी प्रतीति सहज ही हो जाती है। __पं० दलसुख भाई ने अंग आगम के पश्चात् किसी समय इसकी रचना मानी है जो सम्पन्न प्रतीत होता है।'
१. व्यक्तिगत चर्चा के आधार पर
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