Book Title: Siddha Hemchandrabhidhasya Shabdanushanasya Parishishtam
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 174
________________ १७० [सिद्धहेम]. ३५०- अङ्गहिं अङ्गु न मिलिउ हलि अहरें अहरु न पत्त । १२. पिअ जोअन्तिहे मुह-कमलु एम्वई सुरउ समत्तु॥ एहि ॥ ३३३ ॥ अपभ्रंशे अकारस्य टायामकारो भवति ॥ जे महु दिपणा दिअहंडा दईएँ पवसन्तेण। ताणं गणन्तिए अङ्गुलिउ जजरिआउ नहेण ॥ डिनेच्च ॥ ३३४ ॥ अपभ्रंशे अकारस्य डिना सह इकार एकारश्च भवतः । साय: उप्परि तणु धरई तलि घल्लइ रयणाई। सामि सुभिचुवि परिहरई सम्माणेइ खलाई। तले घल्लइ । भिस्यद्वा ॥ ३३५॥ अपभ्रंशे अकारस्य भिसि परे एकारो वा भवति ॥ __ गुणहिं न संपई कित्ति पर फल लिहिआ भुञ्जन्ति । केसरि न लहइ बोड्डुिअवि गय लक्खेहि घेप्पन्ति ॥ डहें हूँ ॥ ३३६ ॥ अस्येति पञ्चम्यन्तं विपरिणम्यते । अपभ्रंशे अकारात्परस्य॑ उसेहें हैं इत्यादेशौ भवतः । वच्छहे ऍण्हइ फलई जणु कडु-पल्लव वजे। तोवि महहुमुसुअणु जिव ते उच्छंङ्गि धरेई । वच्छेहु गुण्हइ। १P मिलिअठ. २ A हले. ३ B अहरे. " A दिन्ना. ५ A B दइए ६ B ताण. . ७ A गणंतिअ. ८ A भवति. ९ B सायर. १. B उपरि. ११ B°रो भ. १२B गुणेहि. १३ P संपय. १४ B परं. १५ A हेहू १६ A हेंहू. १७ B°शौ वा भ. १८ A गृन्हइ. १९ A B जिम्व. २०P उच्छड़े. २१ B वच्छत.

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