Book Title: Siddha Hemchandra Shabdanushasan
Author(s): Chandrasagar Gani
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 346
________________ अ० पा० सु० । ६ । ४ । ३२ । ] परिपन्धात्तिष्ठति च | ६ | ४|३२| परिपथात् |६|४|३३| अवृद्धेर्गृह्णति ग | ६|४|३४| कुसीदादिकट् |६|४|३५| दशैकादशादिकच | ६ |४| ३६ | अर्थपदपदोत्तरललामप्र तिकण्ठात् |६|४|३७| परदारादिभ्यो गच्छति | ६ | ४ | ३८ | प्रतिपादिक | ६|४|३९| माथोत्तरपदपदव्याक्रन्दाद्धावति |६|४|४०| पश्चात्यनुपदात् ||६|४|४१ | सुस्नातादिभ्यः पृच्छति | ६ |४| ४२ | प्रभूतादिभ्यो ब्रुवति |६|४|४३| माशब्द इत्यादिभ्यः | ६|४|४४ | शाब्दिक दार्दरिकलालाटिक कौक्कु टिकम् | ६ |४ |४५ । समूहार्थात् समवेते |६|४|४६| पर्षदो यः || ६ |४| ४७७ सेनाया वा | ६ |४| ४८ धर्माधर्माचरति || ६ | ४|४९| षष्ठया धयें | ६ | ४|५०/ ऋन्नरादेरण् |६|४|५१| विभाजयितृविशसितुर्णीड्लुक् च | ६|४|५२| अवक्रये | ६|४|५३ | तदस्य पण्यम् ||६|४|५४ | किशरा रिकट् || ६|४|५५ शलालुनो वा | ६|४|५६ । शिल्पम् ||६|४|५७ | Jain Education International ( २६३ ) [ अ० पा० सू० । ६ । ४ । ८५ । मडुकर्झराद्वाऽण् |६|४|५८ | शीलम् |६|४|५९ | अस्थाच्छत्रादेरञ् |६|४|६०| तूष्णीकः | ६|४|६१ | प्रहरणम् ||६|४|६२ परश्वधाद्वाऽण् |६|४/६३ । शक्तियष्टेष्टीकण् |६|४|६४ | वेष्ट्यादिभ्यः ||६|| ४|६५ | नास्तिकास्तिकदैष्टिकम् | ६|४|६६ | वृत्तोऽपपाठोऽनुयोगे | ६ | ४|६७ | बहुस्वरपूर्वादिकः ||६|४|६८| भक्ष्यं हितमस्मै | ६|४|६९ | नियुक्तं दीयते | ३ | ४ | ७० | श्राणामांसौदनादिको वा | ६ |४| ७१ | भक्तौदनाद्वा णिकटू |६|४/७२ | नवयज्ञादयोऽस्मिन् वर्त्तन्ते | ६ |४| ७३ | तत्र नियुक्त | ६|४|७४ | अगारान्तादिकः | ६ |४/७५ | अदेशकालादध्यायिनि | ६ | ४|७६ | निकटादिषु वसति | ६|४|७७ सतीर्थ्यः ||६|४|७८| प्रस्तारसंस्थानतदन्तकठिनान्तेभ्यो व्यवहरति || ६|४|७९ । सङ्ख्यादेश्चार्हदलुचः | ६|४|८०| गोदानादीनां ब्रह्मचर्ये | ६|४|१| चन्द्रायणं च चरति | ६|४|८२ | देवतादीन् डिन् | ६ |४| ८३ । डकश्चाष्टाचत्वारिंशतं वर्षाणाम् |६|४|८४ | चातुर्मास्यन्तौ यलुक् च | ६|४|८५ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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