Book Title: Siddha Hemchandra Shabdanushasan
Author(s): Chandrasagar Gani
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 344
________________ अ० पा० सू० । ६ । ३ । १३७ । ] अन्तः पूर्वादिकणू | ६ | ३ | १३७| पर्यनोग्रमात् ६ |३ | १३८ [ अ० पा० सू० । ६ । ३ | १९२ । छन्दोगौक्त्थिकयाज्ञिकबहूवृचाच धर्माम्नायसङ्के |६|३|१६६ । उपाज्जानुनी विकर्णात् प्रायेण | ३ | ३. १३९ | आथर्वणिकादणिकलुक्च | ६|३ | १६७ रूढावन्तः पुरादिकः | ६ | ३ | १४० | ( २६१ ) कर्णललाटात् कल् |६|३|१४१ | तस्य व्याख्याने च ग्रन्थात् | ६| ३ | १४२ | रैवतिकादेरीयः | ३ | ३ | १७० | प्रायो बहुस्वरादिकण |६| ३ | १४३ | ऋगृद् द्विस्वरयागेभ्यः | ६ | ३|१४४ | कौपिञ्जलहास्तिपदादण् | ६ | ३ | १७१ | सङ्घघोषाङ्गलक्षणेऽञ्यञिञः | ६ | ३ | १७२ । शाकलादकच | ६ |३ | १७३ | ऋषेरध्याये | ६ | ३|१४५ । पुरोडाश पौरोडाशादिकेकटौ | ३ | ३ | १४६ । गृहेऽग्नीधोरण्धश्च | ६ |३|१७४। रथात् सादेश्च वोढुङ्गे |६|३|१७५। छन्दसो यः । ६।३।१४७। शिक्षादेवाण | ६ | ३ | १४८। तत आगते | ६ | ३ | १४९ । विद्यायोनिसम्बन्धादकञ् | ६ |३|१५० | यः |६|३|१७६। पत्रपूर्वादव् ||६|३|१७७ वाहनात् । ६:३।१७८ । वायुपकर | ६|३|१७९ । वस्तुरिवादिः | ६ |३|१८० तेन प्रोक्ते |६|३|१८१ । मौदादिभ्यः : |६|३|१८२ | कठादिभ्यो वेदे लुप् |६|३|१८३। तित्तिरिवरतन्तुखण्डिको खादी णू | ६| ३ | १८४ | चरणादक |६|३|१६८। गोत्राददण्डमाणव शिष्ये | ६ | ३ | १६९ | पितु वा | ६ |३|१५१ | ऋत इकण | ६| ३ | १५२। आयस्थानात् | ६|३|१५३ | शुण्डिकारण | ६| ३ | १५४ | गोत्रादङ्कवत् |६|३|१५५/ तुभ्यो रूप्यमय वा । ६ । ३ | १५६ । प्रभवति |६|३|१५७/ वैर्यः ६ |३ | १५८ | त्यदादेर्मयट् ||६|३|१५९ / तस्येदम् ||६|३|१६०| हलसीरादिकण | ६| ३|१६१ | समिध आधाने टेन्यणू | ६ | ३ | १६२ | विवाहे द्वन्द्वादक | ६।३।१६३। अदेवासुरादिभ्यो वैरे | ६ | ३ | १६४ | नदान्दत्ते ञ्यः | ६| ३|१६५ । Jain Education International छगलिनो णेयिन् |६|३|१८५ | शौनकादिभ्यो णिन् | ६|३|१८६ | पुराणे कल्पे | ६ | ३ | १८७ काश्यपकौशिकाद्वेदवच | ६ | ३ | १८८ | शिलालिपाराशर्यान्नटभि क्षुसूत्रे |६|३|१८९| कृशाश्वकर्मन्दादिन् | ६ | ३ | १९० । उपज्ञाते |६|३|१९१ कृते | ६|३|१९२| For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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