Book Title: Shrut Ratna Ratnakar
Author(s): Pradyumnavijay
Publisher: Syadwad Prakashan Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 41
________________ श्रत रत्नरत्नाकरे किं तु महिलाण तासिं दसणसुंदेरजमि-अमोहाणं / आलिंगणमइरा देइ वज्झमालाण व विणासं // 120 // रमणीण दंसणं चेव सुंदरं होउ संगमसुहेणं / गंधुच्चिय सुरहो मालईइ मलणे पुणः विणासो // 12 // साकेअपुराहिवइ देवरई रजसुक्खपन्भट्टो / पंगुलहेतुं छूढो बुढो अ नईइ देवीए // 122 // सोअसरी दुरिअ-दरीकवड-कुडी महिलिआ किलेसकरी / वइर-विरोअण-अरणी दुक्खखणी सुक्खपडिवक्खा // 123 // अमुणिअ-मणपरिकम्मो सम्मको नाम नासिउं तरइ / वम्मह-सरपसरोहे दिहिच्छोहे मथच्छीणं ? // 124 / / घणमालाओ व दूरुन्न-मंतसुपओहराउः क्ढंति / मोहविसं महिलाओ अलक्कक्सिं व पुरिसरस // 125 // परिहरसु तओ तासि दिष्टिं दिट्ठीविसरस व अहिस्स / जं रमणि-नयणबाणा चरित्तपाणे विणासंति // 126 // महिला-संसग्गीए अग्गी इव जं च अप्पसारस्स / मयणं व मणो मुणिणोऽवि हंत सिग्घ चिअ विलाइ // 12 // जइवि परिचंत्तसँगो तवतणुअंगो तहावि परिवडइ / महिला-संसग्गीए कोसाभवणूसिअव्व रिसी // 128 // सिंगारतरंगाए विलासलाइ जुठवणजलाए। पहसिअ-फेणाँइ मुणी नारिनईए न बुड्डेति // 129 // विसयजलं मोहकलं विलास-वियोज-जलयराइन्नं। . मयमयरं उत्तिन्ना तारुममहनवं धीरा // 130 //

Loading...

Page Navigation
1 ... 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186