Book Title: Shrut Ratna Ratnakar
Author(s): Pradyumnavijay
Publisher: Syadwad Prakashan Mandir Trust
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________________ श्रुतरत्नरत्नाकरे mmmmmmmmmmm निरयावास सुरालय असंखदीवोदहीहिं कलियरस / तस्स सहावं चिंतेज धम्मज्झाणत्थमुवउत्तो // 427 // अहवा लोगसभावं भावेज्ज भवंतरम्मि मरिऊण / जणणीवि हवइ धूया धूयाविहु गेहिणी होइ / / 428 // पुत्तो जणओ जणओवि नियसुओ बंधुणोऽवि होंति रिऊ / अरिणोऽवि बंधुभावं पावंति अणंतसो लोए // 429 // पियपुत्तस्सवि जणणी खायइ मंसाइं भवपराक्त्ते / जह तस्स सुकोसलमुणिवरस्स लोयम्मि कट्ठमहो // 430 // केवलदुहनिम्मविए पडिओ संसारसायरे जीवो। जं अणुहवइ किलेसं तं आसवहे उयं सव्वं // 431 // रागद्दोसकसाया पंच पसिद्धाइं इंदियाइं च / हिंसालियाइयाणि य आसवदाराई कम्मस्स // 432 // रागद्दोसाण धिरत्थु जाण विरसं फलं मुणंतोऽवि / पावेसु रमइ लोओ आउरवेजोव्व अहिएसु // 433 // धम्मं अत्थं कामं तिन्निवि कुद्धो जणो परिचयइ / आयरइ ताई जेहि य दुहिओ इह परभवे होइ // 434 / / पावंति जए अजसं उम्मायं अप्पणो गुणभंसं / उवहसणिज्जा य जणे होंति अहंकारिणो जीवा // 435 // जहजह वंचइ लोयं माइल्लो कूडबहुपवंचेहिं / तह तह संचिणइ मलं बंधइ भवसायरं घोरं // 436 // लोभेण व हरियमणो हारइ कज्जं समायरइ पावं। . अइलोभेण विणस्सइ मच्छोव्व जहा गलं गिलिउं // 437 //
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