Book Title: Shrut Ratna Ratnakar
Author(s): Pradyumnavijay
Publisher: Syadwad Prakashan Mandir Trust

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Page 176
________________ सिरिवेरग्गसययं (9) mmmmmmmm अह दुक्खिआइ तह, भुक्खियाइ जह चिंति आइडिमाइ, / तह थोपि न अप्पा, विचिंतिओ जीव ! किं भणिमो / / 29 // खणभंगुरं सरीरं, जीवो अन्नो अ सासयसरुवो। कम्मवसा संबंधो, निब्बंधो इत्थ को तुज्झ // 30 // कह भायं कह चलियं, तुमंषि कह आगओ कहं गमिही,। अन्नु मंपि न याणह, जीव ! कुटुंबं कओ तुज्झ ? // 31 // खणभंगुरे सरीरे, मणुअभवे अब्भपडल-सारिच्छे,। सारं इत्तियमेत्तं, जं कीरइ सोहणो धम्मो // 32 // जम्मदुक्खं जरादुक्खं, रोगा य मरणाणि य,। अहो दुक्खो हु संसारो, जत्थ कीसंति जंतुणो // 33 // जाव न इंदियहाणी, जाव न जररक्खसी परिप्फुरइ, / जाव न रोगविआरा, जाव न मच्चू समुल्लिअइ // 34 // जह गेंहमि पलित्ते, कूवं खणिउं न सक्कए कोइ। तह संपत्ते मरणे, धम्मो कह कीरए जीव ! // 35 // रुवमऽसासयमेयं, विज्जुलया-चंचलं जाए जीरं,। संझाणुराग-सरिसं, खणरमणीअंच तारुनं // 36 // गयकन्न-चंचलाओ, लच्छीओ तिअस-चाव-सारिच्छं, / विसयसुहं जीवाणं बुज्झसु रे जीन ! मा मुझ // 37 // जह संझाए सउणाण, संगमो जह पहे अ पहिआणं, / सयणाणं संजोगो, तहेव खणभंगुरो जीव ! // 38 // निसाविरामे परिभावयामि, गेहे पलित्ते किमऽहं सुयामि / डझंत-मऽप्पाण-मुविक्खयामि, जं धम्मरहिओ दिअहा गमामि // 39 //

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