Book Title: Shrut Ratna Ratnakar
Author(s): Pradyumnavijay
Publisher: Syadwad Prakashan Mandir Trust

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Page 181
________________ श्रुतरत्नाकरे 168 mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm दुट्ठकम्मपलया निलपेरिउ भीसणम्मि भवारणे / . हिंडंतो नरएसुवि अणंतसो जीव ! पत्तोसि // 84 // सत्तय नरयमहीसु वजानलवदाहसीयवियणासु। वसिओ अगंतखुत्तो विलवंतो करुणसद्देहिं // 85 // पिय-माय सयणरहिओ दुरंतवाहीहिं पीडिओ बहुसो। मणुअभवे निस्सार विलाविओ किं न तं सरसि // 86 / / पवणुव्व गयणमग्गे अलक्खिओ भमइ भववणे जीवो। ठाणट्ठाणम्मि समुज्झिऊण धणसयणसंघाए / 87 / / विद्धिज्जंता असंयं जम्म-जरा- मरण-तिक्खकुंतेहिं / दुहमणुहवंति घोरं संसारे संसरंत जिआ // 88 // तह वि खणंपि कहा वि हु अन्नाणभुयंगडंकिया जीवा / संसारचारगाओ न य उव्विज्जति मूढमणा / / 89 // कीलसि कियंतवेलं रीरवावीइ जत्थ पइसमयं / कालरहट्टघडीहिं सोसिजइ जीविअंभोरं // 90 // रे जीव ? बुज्झ मा मुज्झ मा पमायं करेसि रे पाव / . किं परलोए गुरुदुक्खभायणं होहिसि अयाण ? // 91 // बुज्झसु रे जीव ! तुम मा मुज्झसु जिणमयम्मि नाऊणं / जम्हा पुणरवि एसा सामग्गी दुल्ललहा जीव ! // 92 / / दुलहो पुण जिणधम्मो तुमं पमायायरो सुहेसी य / दुसहं च नरयदुक्खं कह होहिसि तं न याणामो // 93 // अथिरेण थिरो समलेण निम्मलो परवसेण साहीणो। . देहेण जइ विढप्पइ धम्मो ता किं न पज्जत्तं // 94 //

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