Book Title: Shrut Ratna Ratnakar
Author(s): Pradyumnavijay
Publisher: Syadwad Prakashan Mandir Trust

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Page 180
________________ 167 . सिरिवेरग्गसययं संबुज्झह किं न बुज्ज्ञह संबोही खलु पेञ्च दुल्लहा। नो हु उवणमंति राइओ नो सुलहं पुणरवि जीवियं // 73 // डहरा वुड्ढा य पासह गब्भथावि चयंति माणवा / सेणे जह वट्टयं हरे एवमाउक्खयम्मि तुट्टइ // 74 // तिहुअणजग मरंतं ठूण नयंति जे न अप्पाणं / विरमंति न पावाओ धी धी धीहत्तणं ताणं // 75 // मा मा जंपह बहुयं जे बद्धा चिक्कणहिं कम्मेहिं / संव्वेसिं तेसिं जायइ हिओवएसो महादोसो // 76 // कुणसि ममत्तं धणसयण विहवपमुहेसु अणंतदुक्खेसु / सिढिलेसि आयरं पुण अणंतसुक्खम्मि मुक्खम्मि // 77 // संसारो दुहहेऊ दुक्खफलो दुसहदुक्खरूवो य / न चयंति तंपि जीवा अइबद्धा नेहनिअलेहिं // 7 // नियकम्मपवणचंलिओ जीवो संसार काणणे घोरे / का का विडंबणाओं न पावए दुसहदुक्खाओ // 79 // सिसिरम्मि सीयलानिल-लहरिसहस्सेहि भिन्नघणदेहो। तिरियत्तणम्मि रण्णे अणंतसो निहणमणुपत्तो / / 80 // गिम्हायवसंतत्तो रणे छुहिओ पिवासिओ बहुसो। . संपत्तो तिरियभवे मरणदुहं बहु विसूरंतो // 81 // गसासु रण्णमझे गिरिनिज्झरणोदगेहि बझंतो। सीयानिल उज्झविओ मओसि तिरियत्तणे बहुसो // 82 // एवं तिरियभवेसु कीसंतो दुक्खसयसहस्सेहिं / वसिओ अणंतखुत्तो जीवो भीसणभवारण्णे // 83 //

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