Book Title: Shrut Ratna Ratnakar
Author(s): Pradyumnavijay
Publisher: Syadwad Prakashan Mandir Trust
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________________ 165 सिरिवरग्गसयय निहरीअ कहवि तत्तो पत्तो मणुअत्तणंपि रे जीव ! / तत्थवि जिणवर-धम्मो पत्तो चिंतामणि-सरिच्छो // 51 // पत्तेवि तंमि रे जीव कुणसि पमायं तुम तयं चेव। . जेणं भवंधकूवे पुणोवि पडिओ दुहं लहसि // 52 // उवलद्धो जिणधम्मो न य अणुचिण्णो पमाय-दोसेणं / हा जीव ! अप्पवेरि अ सुबहुं परओ विसूरिहिसि // 53 // सोअंति ते वराया, पच्छा समुवट्ठियमि मरणमि, / पावपमाय-वसेणं, न संचिओ जेहिं जिणधम्मो // 54 // धी धी धी संसारं. देवो मरिऊण जं तिरी होइ . मरिंऊण रायराया परिपञ्चइ निरय-जालाहिं // 55 // जाइ अणाहो जीवो, दुमस्स पुष्पं व कम्मवाय-हओ। धणधन्नाहरणाई. घर-सयण-कुडुंब मिल्लेवि // 56 // वसियं गिरीसु वसियं दरीसु घसियं समुदमझमि / रुक्खग्गेसु य वसियं संसारे संसरंतेणं // 5 // देवो नेरइउत्ति य कीड पयंगुत्ति माणुसो एसो। रुवस्सी य विरुवो. सुहभागी दुक्खभागी य // 58 // राउत्ति य दमगुत्ति य एस सवागुत्ति एस वेयविऊ। सामी दासो पुज्जो खलोत्ति अधणो धणवइत्ति !!59 // नवि इत्थ कोइ निअमो, सकम्म-विणिविट्ठ-सरिस-कयचिट्ठो / अन्नुन्नरुववेसो नडुव्व परिअत्तवे जीवो // 60 // नरएसु वेअणाओ अणोषमाओ असायबहुलाओ। रजीव तए पत्ता अणंतखुत्तो बहुविहाओ // 61 / /
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