Book Title: Shrut Ratna Ratnakar
Author(s): Pradyumnavijay
Publisher: Syadwad Prakashan Mandir Trust

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Page 175
________________ श्रुतरत्नरत्नाकरे 162 nmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm चुलसीइ किर लोए, जोणीणं पमुहसयसहस्साई,। . इक्विकम्मि अ जीवो, अणंतखुत्तो समुप्पन्नो // 18 // माया-पिय-बंधूहि, संसारत्थेहिं पूरिओ लोउ,। बहुजोणि-निवासीहिं, न य ते तागं च सरणं च // 19 / / जीवो वाहि-बुलुत्तो, सफरो इव निजले तडप्फडइ,। सयलो वि जगो पिच्छइ, को सक्को वेअणा-विगमे मा जाणसि जीव तुम; पुत्तकलत्ताइ मज्झ सुहहेऊ,। निरणं बंधण-मेयं, संसारे संसरंतागं // 21 // जणगी जायइ जाया, जाया माया पिया य पुत्तो य, / अणवत्था संसारे, कम्मवसा सव्वजीवाणं // 22 // न सा जाइ न सा जोणी, न तं ठागं न त कुलं, / न जाया न मया जत्थ, सव्वे जीवा अगंतसो // 23 // तं किंपि नत्थि ठाणं, लोए वालग्ग-कोडिमित्तंपि,। जत्थ न जीवा बहुसो, सुह दुक्ख-परंपरा पत्ता // 24 // सयाओ रिद्धीओ, पत्ता सव्वेवि सयण-संबंधा,। . संसारे ता विरमसु, तत्तो जइ मुणसि अप्पाणं // 25 // एगो बंधइ कम्मं, एगो वह-बंध-मरणवसणाई,। विसहइ भवमि भमडइ, एगुच्चिअ कम्मवेलविओ // 26 // अन्नो न कुगइ अहियं, हियपि अप्पा करेइ नहु अन्नो,। . अप्पकयं सुहदुक्खं, भुंजसि ता कीस दीणमुहो // 27 // बहुआरंभ- विढत्तं, वित्तं विलसति जीव ! सयणगणा,। तज्जणिय-पाक्कम्मं, अणुहवसि पुणो तुमं चेव // 28 //

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