Book Title: Shrut Ratna Ratnakar
Author(s): Pradyumnavijay
Publisher: Syadwad Prakashan Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 174
________________ श्री सिरिवेरग्गसवयं(९) सा नत्थि कला तं नत्थि, उसहं तं नत्थि किंपि विन्नाणं, जेण धरिज्जइ काया, खज्जंती कालसप्पेणं // 7 // दीहरफणिंद-नाले, महिअर-केसर दिसा-महदलिल्ले,। उ पीअइ कालभमरो, जणमयरंदं पुहवि पउमे // 8 // जयामिसेण कालो, सयलजीआणं छलं गवसंतो,। पासं कहवि न मुंचइ, ता धम्मे उज्जमं कुणह // 9 // कालंमि अणाइए, जीवाणं विविहकम्म-वसगाणं,। तं नत्थि संविहाणं, संसारे जं न संभवइ // 10 // बंधवा सुहिणो सव्वे, पियमाया पुत्तभारिया, / पेअवणाउ निअत्तति, दाऊणं सलिलंजलिं // 11 // विहडंति सुआ विहडंति, बंधवा वल्लहा य विहडंति,। इक्को कहवि न विहडइ, धम्मो रे जीव ! जिणभणिओ // 12 // अडकम्म-पासबद्धो, जीवो संसार-चारए ठाइ,। अडकम्म-पासमुक्को, आया सिवमंदिरे ठाइ // 13 // विहवो सज्जणसंगो, विसयसुहाई विलास ललिआई,। नलिणीदलग्ग-धोलिर, जललव-परिचंचलं सव्वं // 14 // तं कत्थ बलं तं कत्थ, जुव्वणं अंगचंगिमा कत्थ,। सव्वमणिच्चं पिच्छह, दिटुं नर्से कयंतेण // 15 // घणकम्म-पासबद्धो, भक्नयर-चउप्पहेसु विविहाओ,। पावइ विडंबणाओ, जीवो को इत्थ सरणं से // 16 // घोरंमि गम्भवासे कलमल-जंबाल-असुइबीभच्छे, / वसिओ अणंतखुत्तो, जीवो कम्माणु भावेण // 17 //

Loading...

Page Navigation
1 ... 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186