Book Title: Shrut Ratna Ratnakar
Author(s): Pradyumnavijay
Publisher: Syadwad Prakashan Mandir Trust

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Page 161
________________ . दुतरत्नरत्नाकरे 148 वीयं सुकं तह सोणियं च ठाणं तु जणणिगब्भम्मि। ओयं तु उवटुंभस्स कारणं तस्सरूवं तु // 405 // अट्ठारस पिढिकरंडयस संधीओ होंति देहम्मि / बारस पंसुलियकरंडया इहं तह छ पंसुलिए // 406 // . होइ कडाहे सत्तंगुलाई जीहा पलाई पुण चउरो। अच्छीओ दो पलाइं सिरं च भणियं चउकवालं // 407 // अधुढपलं हिययं बत्तीसं दसण अहिखंडाई / / .. कालेज्जयं तु समए पणवीस पलाई निदिहूँ // 408 // अंताई दोन्नि इहई पत्तेयं पंचपंचवामाओ। सट्ठसयं संधीणं मम्माण सयं तु सत्तहियं // 409 // सहसयं तु सिराणं नाभिप्पभवाण सिरमुवगयाणं / रसहरणिनामधिज्जाण जाणऽणुग्गह विघाएसु // 410 // सुइ चक्खुघाणजीहाणऽणुग्गहो होइ तह विघाओ य / सट्ठसयं अन्नाणवि सिराणऽहोगामिणीण तहा // 411 // पायतलमुबगयाणं जंघाबलकारिणीणमुवघाओ। उवघाए सिरि वियणं कुणंति अंधत्तण च तहा // 412 // अवराण गुदपविट्ठाण होइ सहुँ सयं तह सिराणं / जाण बलेण पवत्तइ वाऊ मुत्तं पुरीसं च // 413 // भरिसाओ पंडुरोगा वेगनिरोहो य ताणमुवधाए / तिरियगमाण सिराणं सहसयं होइ अवराणं // 414 / / बाहुबल कारिणीओ उवघाए कुच्छिउयरवियणाओ। कुव्वंति तहऽन्नाओ पणवीसं सिंभधरणीओ // 415 / /

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