Book Title: Shrut Ratna Ratnakar
Author(s): Pradyumnavijay
Publisher: Syadwad Prakashan Mandir Trust

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Page 160
________________ 147 . . भवभावना(८) wimmmmmmmmmmmmm पुरओ परघरदासत्तणेणऽविज्झाय उपर भरणाणं / मियाई तत्थ रमणिज्जकप्पतरु गहणदेसेसु // 394 // पुरओ गन्भे य ठिइं दळु दुट्ठाइ रासहीए वा। सा उप्पज्जइ अरई सुराण जं मुणइ सव्वन्नू // 395 // अज्जविय सरागाणं मोहविमूढाण कम्मवसगाणं / अन्नाणोवहयाणं देवाण दुहम्मि का संका ? // 396 // सम्मट्ठिीणवि गब्भवासपमुहं दुहं धुवं चेव / हिंडंति भवमणंतं च केइ गोसालयसरित्था // 397 // तम्हा देवगईए जं तित्थयराण समवसरणाई / कीरइ वेयाविच्चं सारं मन्नामि सं चेव // 398 // एत्थ य चउगइजलहिम्मि परिन्भमंतेहिं सयलजीवेहिं / जायं मयं च सहिओ अणंतसो दुक्खसंघाओ // 399 / / सो नत्थि पएसो तिहुयणम्मि तिल सतिभागमेत्तोऽवि / जाओ न जत्थ जीवो चुलसीईज़ोणिलक्खेसु // 400 // सव्वाणि सव्वलोए अर्णतखुत्तोधि जीवलक्खाई। देहोवक्खर परिभोय भोयणसेण भुताई // 401 // मयरहरोव्व जलेहिं तहवी हु दुप्पूरओ इमो अप्पा। विसयामिसम्मि गिद्धो भवे भवे वच्चइ न तत्ति // 402 // इयभुत्तं विसयसुहं दुहं च तप्पच्चयं अणंतगुणं / इण्हि भवदुहदलणम्मि जीव ! उज्जमसु जिणधम्मे // 403 // बीयट्ठाणमुवटुंभहेयवो चिंती सरूवं च / को होज्ज सरीरम्मिवि सुइवाओ मुणियतत्ताणं 1 // 404 // ..

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