Book Title: Shrut Ratna Ratnakar
Author(s): Pradyumnavijay
Publisher: Syadwad Prakashan Mandir Trust

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Page 158
________________ 145 भवभावना (8 गंतुं ववसायसभाए वायए रयणपोत्थयं तत्तो। तवणिज्जमयक्खरममर किच्चनयमग्गं पायडणं // 372 // पूओवगरणहत्थो नंदापोक्खरिणिविहियजलसोओ। सिद्धाययणे पूयइ वंदइ भत्तीऍ जिणबिम्बे // 373 // .. गंतूण सुहम्मसभं तत्तो अच्चइ जिणिंदसगहाओ। सीहासणे तहिं चिय अत्थाणे विसइ इंदोव्व // 374 // इय सुहिणो सुरलोए कयसुकया सुरवरा समुप्पन्ना। रयणुकडमउडसिरा चूडामणिमंडियसिरग्गा // 375 // गंडयललिहंतमहंतकुंडला कंठनिहियवणमाला / हारविराइयवच्छा अंगयकेऊरकयसोहा // 376 // मणिवलयकणयकंकण विचित्तआहरणभूसियकरग्गा। मुद्दारयणंकियसयलअंगुली रयणकडिसुत्ता // 377 // आसत्तमल्लदामा कणयच्छवि देअदूसनेवत्था / वरसुरहिगंधकयतणु विलेवणा सुरहिनिम्माया // 378 // आजम्मवाहिजरदुच्छ्वज्जिया निरुवमाई सोक्खाई। भुजंति समं सुरसुंदरीहिं अचलियतारुन्ना // 379 // . नाणासत्तीइ तुलंति मंदरं कंपयंति महिवीढं / उच्छल्लंति समुद्दावि कामरूवाई कुव्वंति // 380 // सच्छंदयारिणो काणणेसु कीलंति सह कलत्तेहिं / अणुणो गुरुणो लहुणो दिस्समदिस्सा य जायंति // 381 // बत्तीसपत्तबद्धाओं विविहनाडयविहीओ पेच्छंति / कालमसंखंपि गति पमुइया रयणभवणेसु // 382 //

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