Book Title: Shrut Ratna Ratnakar
Author(s): Pradyumnavijay
Publisher: Syadwad Prakashan Mandir Trust
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________________ भवभावना (8) दुक्करमेएहिं कयं, जेहिं समत्थेहिं जोव्वणत्थेहिं / भग्गं इंदियसेन्नं, धिइपायारं विलग्गेहिं // 460 // जम्मपि ताण थुणिमो हिमं व विप्फुरिय झाणजलणम्मि / तारुण्णभरे मयणो जाण सरीरम्मि निविलीणो // 461 // जे पत्ता लीलाए कसायमयरालयस्स परतीरं / ताण सिवरयणदीवं-गमाण भई मुणिंदाणं // 462 // पणमामि ताण पयर्ष-कयाइं धणु-खंद-पमुहसाहूणं / मोहसुहडाहिमाणो लीलाएँ नियत्तिओ जेहिं // 463 // इय एवमाइउत्त-मगुणरयणाहरणभूसियंगाणं / धीरपुरिसाण नमिमो तियलोयनमंसणिज्जाणं // 464 // भवरन्नम्मि अणंते कुमग्गसयभोलिएण कहकहवि / जिणसासणसुगइपहो पुन्नेहिं मए समणुपत्तो // 465 // आसन्ने परमपए पावेयव्वम्मि सयलकल्लाणे / जीवो जिणिंदभणियं पडिवज्जइ भावओ धम्मं // 466 // मणुयत्तखेत्तमाईहिं विविहहेऊहिं लब्भए सो य / समए य अइदुलभं भणियं मणुयत्तणाईयं // 467 // माणुस्स खेत्त जाई कुलरूवारोग्ग आउयं बुद्धी / सवणोग्गह सद्धा संजमो य लोयम्मि दुलहाई // 468 // अवरदिसाए जलहिस्स कोइ देवो खिवेज किर समिलं / पुवदिसाए उ जुगं तो दुलहो ताण संजोगो // 469 // अविजलहिमहाकल्लोलपेल्लिया सा लभेज जुगछिड्डे / मणुयत्तणं तु दुलहं पुणोवि जीवाणऽउन्नाणं // 470 //
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