Book Title: Shrut Ratna Ratnakar
Author(s): Pradyumnavijay
Publisher: Syadwad Prakashan Mandir Trust
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________________ श्रुतरत्नरत्नाकरे घेत्तूण जंति खीरोयहिम्मि तह पुक्खरोयजलहिम्मि। . दोसुवि गिण्हंति जलाई तह य वरपुडरीयाई // 361 // मागहवरदामपभासतित्थतोयाई मंट्टियं च तओ। समयक्खेत्ते भरहाइंगंगसिंधूण सरियाण // 362 // रत्तारत्तवइंण महानइ तओऽवराणपि / . उभयतडमट्टियं तह जलाइ गिण्हंति सयलाण // 363 // गंतूण चुल्लहिमवंतसिहरिपमुहेसु कुलगिरिदेसु / . सव्वाइं तु वरओसहिसिद्धत्थयगंधमल्लाई / 364 // गिण्हंति वट्टवेयट्टसेलसिहरेसु चउसु एमेव / विजएसुजाई मागहवरदामपभासतित्थाई // 365 // गिण्हंति सलीलमंट्टियमंतरनइसलिलमेव उवणेति / धक्खारगिरीसु वणम्मि भद्दसालम्मि तुवराई / / 366 / / नंदणवणम्मि गोसीसचंदणं सुमणदामसोमणसे / पंडगवणम्मि गंधा तुवराईणि य विमीसंति // 367 // तो गंतुं सट्ठाणं ठविउं सीहासणम्मि ते देवं / वरकुसुमदामचंदणचच्चियपडमप्पिहाणेहिं // 368 // कलसेहिं ण्हवंति सुरा केई गायंति तत्थ परितुट्ठा / वायति दुंदुहीओ पढंति बंदिव्व पुण अन्ने // 369 / / रयणकणयाइवरिसं अन्ने कुव्वंति सीहनायाई / इय महया हरिसेणं अहिसित्तो तो समुढेउ // 370 // उध्दुय मुयंगदुंदुहिरवेण सुरयणसहस्सपरिवारो। सोऽलंकारसमाए गतु गिण्हइ अलंकार // 371 //
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