Book Title: Shrut Ratna Ratnakar
Author(s): Pradyumnavijay
Publisher: Syadwad Prakashan Mandir Trust
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________________ 119 . भवभावना असुई निञ्चपइट्ठियपूयवसा मंसरुहिरचिक्खिल्ला / धूमप्पभाइ किंचिवि जाव निसग्गेण अह उसिणी // 86 // परओ निसग्गओ च्चिय दुसहमहासीयवेयणाकलिया। निचंधयारतमसा नीसेसदुहायरा सव्वे // 87 / / जइ अमरगिरिसमाणं हिमपिंडं कोऽवि उसिणनरएसु / खिवइ सुरो तो खिप्पं वच्चइ विलयं अपत्तोऽवि // 88 / / धमिय कयअग्गिवन्नो मेरुसमो जइ पडेज अयगोलो / परिणामिजइ सीएसु सोऽवि हिमपिंडरूवेण // 89 // अइकढिणवज्जकुड्डा होंति समंतेण तेसु नरएसु / संकडमुहाइं घडियालयाई किर तेसु भणियाई // 90 // मूढा य महारंभं अइघोरपरिग्गहं पणिंदिवहं / काऊण इहऽन्नाणिवि कुणिमाहाराई पावाई // 91 // पावभरेणोकंता नीरे अयगोलउव्व गयसरणा / वञ्चति अहो जीवा निरए घडियालयाणंतो // 92 // अंगुलअसंखभागो तेसि सरीरं तहिं हवइ पढमं / अंतोमुहुत्तमेत्तेण जायए तंपि हु महल्लं // 93 // पीडिजइ सो तत्तो घडियालयसंकडे अमायतो। पीलिज्जतो हत्थिव्व घाणए विरसमारसइ // 94 // सं तह उप्पण्णं पासिऊण धावंति हट्ठतुट्ठमणा। रे रे गिण्हह गिण्हह एवं दुटुंति जंपंता // 95 // छोल्लिज्जंतं तह संकडाउ जंताओ वंससलियं व / धरिऊण खुरे कड्ढंति पलवमाणं इमे देवा // 96 //
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