Book Title: Shrut Ratna Ratnakar
Author(s): Pradyumnavijay
Publisher: Syadwad Prakashan Mandir Trust
View full book text
________________ V श्रुतरत्नरत्नाकरे mmmmmmmmmmmmmmmmmmm कम्मेयरभूमिसमुब्भवाइभेएणऽणेगहा मणुया। ताणवि चिंतसु जइ अस्थि किंपि परमत्थओ सोक्खं // 251 // गब्भे बालत्तणयमि जोव्वणे तह य वुढभावग्मि। चिंतसु ताण सरूवं निउणं चउसुवि अवस्थासु // 252 // मोहनिवनिविडबद्धो कत्तोऽविहु कढिओ असुइगम्भे / चोरोव्व चारयगिहे खिप्पइ जीवो अणप्पवसो // 253 / / सुकं पिउणो माऊऍ सोणियं तदुभग्नंपि संसह / तप्पढमयाएँ जीवो आहारइ तत्थ उप्पन्नो // 254 // सत्ताहं कललं होइ, सत्ताहं होइ अब्बुयं / अब्बुया जायए पेसी, पेसीओ य घणं भवे // 255 // होइ पलं करिसूणं पढमे मासम्मि बीयए पेसी / होइ घणा तइए उण माऊए दोहलं जणइ // 256 / / जणणीए अंगाई पीडेइ चउत्थयम्मि मासम्मि / करचरणसिरंकूरा पंचमए पंच जायति // 257 // . मुटुंमि पित्तसोणिय सुबद्धठिइ सत्तमंमि मासम्मि / पेसिं पंचसयगुणं कुणइ सिराणं च सत्तसए // 258 // नव चेव य धमणीओ नवनउई लक्ख रोमकूवाणं / अधुट्ठा कोडीओ सम पुणो केसमंसूहि // 259 // निप्फन्नप्पाओ पुण जायइ सो अट्ठमम्मि मासम्मि / ओयाहाराईहि य कुणइ सरीरं समग्गपि // 260 // दुन्नि अहोरत्तसए संवुन्ने सत्तसत्तरी चेव / गब्भगओ वसइ जिओ अ«महोत्तमन्नं च // 261 //
![](https://s3.us-east-2.wasabisys.com/jainqq-hq/c3bd618e7bad607a4de1d8ce3625f349249344e5495e063dde25c31ecab3b526.jpg)
Page Navigation
1 ... 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186