Book Title: Shrut Ratna Ratnakar
Author(s): Pradyumnavijay
Publisher: Syadwad Prakashan Mandir Trust

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Page 148
________________ भवभावना उक्कोसं नवलक्खा जीवा जायंति एगगब्भम्मि / उक्कोसेण नवण्हं सयाण जायइ सुओ एक्को // 262 / / गब्भट्ठिआऽवि काऊण संगामाईणि गरुवपावाई / वच्चंति केऽवि नरयं अन्ने उण जंति सुरलोयं // 263 // नवलक्खाणवि मज्झे जायइ एगरस दुण्ह व समत्ती। सेसा पुण एमेय य विलयं वच्चंति तत्थेव // 264 // सुयमाणीए माऊइ सुयइ जागरइ जायरंतीए / सुहियाइ हवइ सुहिओ दुहियाए दुविखओ गब्भो // 265 // कइयावि हु उत्ताणो कइयावि हु होइ एगपासेण / कइयावि अंबखुज्जो जणणीचेट्ठाणुसारेण // 266 // इय चउपासोबद्धो गब्भे संवसइ दुक्खिओ जीवो / परमतिमिसंधयारे अमेज्झकोत्थलयमज्झे व / / 267 // सूईहिं अग्गिवन्नाहिं, भिज्जमाणरस जंतूणो / जारिसं जायए दुक्खं, गब्भे अट्ठगुणं तओ // 268 // पित्तवसमंससोणियसुक्कट्ठिपुरीसमुत्तमज्झम्मि / असुइम्मि किमिव्व ठिओ सि जीव ! गब्भम्मि निरयसमे // 269 // इय कोइ पावकारी बारस संवच्छराइं गन्भमि / उक्कोसेणं चिट्ठइ असुइप्पभवे असुइम्मि // 270 // तत्तो पाएहिं सिरेण वावि सम्मं विणिग्गमो तस्स / तिरियं णिग्गच्छंतो विणिघायं पावए जीवो // 271 / / गब्भदुहाई दट्टुं जाईसरणेण नायसुरजम्मो / सिरितिलयइब्भतणओ अभिग्गरं कुणइ गीयत्थो // 272 //

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