Book Title: Shrut Ratna Ratnakar
Author(s): Pradyumnavijay
Publisher: Syadwad Prakashan Mandir Trust

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Page 149
________________ श्रतरत्नरत्नाकर..mmmmmmmmmmmmmmmm .136 अविरसरं रसंतो जोणीजंताओ कहवि णिप्फिडइ / माऊऍ अप्पणोऽवि य वेयणमउलं जणेमाणो / / 273 // जायमाणस्स जं दुक्खं, मरमाणरस जंतुणो। तेण दुक्खेण संतत्तो, न सरई जाइमप्पणो // 274 // दाहिणंकुच्छीवसिओ पुत्तो वामाऍ पुण हयइ धूया। . उभयंतरम्मि पसिओ जायेइ नपुंसओ जीवो // 275 / / छुहियं पिवासियं वा वाहिग्यस्थं च अत्तयं कहिउँ / बालत्तणम्मि न तरइ गमइ रुयंतोच्चिय वराओ // 276 / / खेलखरंटियवयणो मुत्तपुरिसाणुलित्त सव्वंगो। / धूलिभुरुंडिय देहे किं सुहमणुहवइ किर बालो ? // 277 // खिवइ करं जलणम्मिवि पक्खिवइ मुहंमि कसिणभुयगंपि / भुंजइ अभोजपेजं बालो अन्नाणदोसेण / / 278 // उल्ललइ भमइ कुक्कुयइ कीलइ जंपइ बहुं असंबद्धं / धावइ निरन्थयपि हु निहणंतो भूयसंघायं // 279 / / इय असमंजसचेट्ठिय अन्नाणऽविवेय कुलहरं गमियं / जीवेणं बालत्तं पावसयाई कुणंतेण // 280 // . बालस्सवि तिव्वाइं दुहाइँ ठूण निययतणयरस / बलसार पुह इवालो निम्विन्नो भवनिवासरस // 251 // तरुणत्तणम्मि पत्तरस धावए दविणमेलणपिवासा। सा कावि जीई न गणइ देवं धम्मं गुरुं तत्तं // 252 // तो मेलइ कहवि अत्थे जइ तो मुज्झइ तयंपि पालंतो। वीहेइ राइतकर अंसहराईण निञ्चपि // 253 //

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