Book Title: Shrut Ratna Ratnakar
Author(s): Pradyumnavijay
Publisher: Syadwad Prakashan Mandir Trust
View full book text
________________ श्रुतरत्नरत्नाकरे . जापाता लायन्नरूवनिहिणो देसण संजणियजणमणाणंदा / इय गुणनिहिणो होउं पढमेच्चिय जोव्वणारंभे // 295 // तह विहुरिज्जंति खणण कुट्ठक्खयपमुहभीमरोगेहिं / जह होंति सोयणिज्जा निवविक्कमरायतणुओव्व // 296 // अन्ने उण सव्वंग गसिया जररक्खसीइ जायति / रमणीण सज्जणाण य हसणिज्जा सोअणिज्जा य // 297 // इय विहवणयपराणवि तारुण्णपि हु विडंबणट्ठाणां / जे उण दारिदहया अनीइमंताण ताणं तु // 298 // परजुवइरमणपरदव्वहरणवहवेर कलहनिरयाणं / दुग्नयजणाण निच्चं दुहाई को वन्निउं तरइ ? // 299 // नत्थि घरे मह दव्वं विलसइ लोओ पयट्टछणओत्ति / डिभाइं रुयंति तहा हद्धी किं देमि घरिणीए ? // 300 // ढंति न मह ढोयपि हु अत्तसमिद्धीइ गव्विया सयणा / सेसा विहु धणिणो परिवंति न हु देति अवयासं // 301 // अज्ज घरे नत्थि घयं तेल्लं लोणं च इंधणं वत्थं / जाया व अज्ज तउणी कल्ले किह होहिइ कुडुम्बं ? // 302 // वड्ढइ घरे कुमारी बालो तणओ न विढप्पडू अत्थे / रोगबहुलं कुडुम्बं ओसहमोल्लाइयं नत्थि // 303 // उक्कोया मह घरिणी समागया पाहुणा बहू अज्ज / जिन्नं घरं च हट्टं झरइ जलं गलइ सव्वंपि // 304 // कलहकरी मह भज्जा असंवुडो परियणो पहू विरुवो। . देसो अधारणिज्जो एसो वच्चामि अन्नत्थ // 305 //
![](https://s3.us-east-2.wasabisys.com/jainqq-hq/7b5eeb9fc589b8cd0b48137caa1bf979d6e287098a7f3c19b553438e557b4f6e.jpg)
Page Navigation
1 ... 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186