Book Title: Shrut Ratna Ratnakar
Author(s): Pradyumnavijay
Publisher: Syadwad Prakashan Mandir Trust
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________________ श्रुतरत्नरत्नाकरे पसुघाएणं नरगाइएसु आहिंडिऊण पसुजम्मे / महुविप्पोव्व हणिज्जइ अणंतसो जालमाईसु // 207 / / रन्ने दवग्गिजालावलीहिं सव्वंगसंपलित्ताणं / हरिणाण ताण सह दुक्खियाण को होइ किर सरणं ? // 208 // निदयपारिद्धियनिसियसेल्लनिभिन्नखिन्न देहेण / हरिणत्तणमिर सरसु जीव ! जं विसहियं दुक्खं // 209 // बद्धो पासे कूडेसु निवडिओ वागुरासु संमूढो / पच्छा अवसो उक्कत्तिऊण कह कह न खद्धोसि ? // 210 // सरपहरवियारियउयरगलियगुझं पलोइउं हरिणिं / सयमवि य पहरविहुरेण सरसु न हु जूरियं हियए // 211 // मायावाहसमारद्ध-गोरिगेयज्झुणीसु मुझंतो।। सवणावहिओ अन्नाणमोहिओ पाविओ निहणं // 212 // ठूण कूडहरिणिं फासिंदिय भोलिओ तहिं गिद्धो / विद्धो बाणेण उरम्मि घुम्मिउं निहणमणुपत्तो // 213 // चित्तयमइंदकमनिसियनहरखरपहरविहुरियंगरस / जह तुह दुहं कुरंगत्तणमि तं जीव ! किं भणिमो ? // 214 // वइविवरविहियझंपो गत्तासूलाइ निवडिओ संतो। जवचणयचरणगिद्धो विद्धो हिययम्मि सूलाहिं // 215 // मत्तो तत्थेव य नियपमायओ निहयरुक्खगयासंगो। सुबहुं वेल्लंतो जं मओऽसि तं किं न संभरसि ? // 216 // गिम्हे कंताराइसु तिसिओ माइण्हियाइ हीरंतो। मरइ कुरंगो फुटुंतलोयणो अहब थेवजले // 217 // .
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