Book Title: Shrut Ratna Ratnakar
Author(s): Pradyumnavijay
Publisher: Syadwad Prakashan Mandir Trust

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Page 139
________________ श्रुत रत्नरत्नाकर - 126 एसो मह पुव्ववेरित्ति नियमणे अलियमवि विगप्पेउं / अवरोप्परंपि घायंति नारया पहरणाईहिं // 163 // सीउसिणाई वियणा भणिया अन्नावि दसविहा समए। खेत्ताणुभावजणिया इय तिविहा वेयणा नरए // 164 // तत्तो कसिणसरीरा बीभच्छा असुइणो सडियदेहा। नीहरिय अन्तमाला भिन्नकवाला लुलंगा य // 165 // दीणा सव्वनिहीणा नपुंसगा सरणवज्जिया खीणा / चिट्ठति निरयवासे नेरइया अहव किं बहुणा ? // 166 // अच्छिनिमीलनमेत्तं नत्थि सुहं दुक्खमेव अणुबद्धं / नरए नेरइयाणं अहोनिसिं पच्चमाणाणं // 167 // तत्थ य सम्मदिट्ठी पायं चितंति वेयणाऽभिहया। मोत्तु कम्माइं तुमं मा रूससु जीव ! जं भणियं / / 168 // सव्वो पुव्वकयाणं कम्माणं पावए फलविवागं / अवराहेसु गुणेसु य निमित्तमेत्तं परो होइ // 169 // .. धारिज्जइ एंतो जलनिहीवि कल्लोलभिन्नकुलसेलो / न हु अन्नजम्मनिम्मिय सुहासुहो देव्वपरिणामो // 170 / / अकयं को परिभुंजइ ? सकयं नासेज्ज करस किर कम्मं ? / सकयमणु/जमाणे कीस जणो दुम्मणो होइ ? // 171 // दुप्पत्थिओ अमित्तं अप्पा सुप्पत्थिओ हवई मित्तं / सुहदुक्खकारणाओ अप्पा मित्तं अमित्तं वा // 172 // वारिज्जंतो वि हु गुरुयणेण तइया करेसि पावाइं। .. . सयमव किणियदुक्खो रूससि रे जीव ! कस्सिण्हि ? // 173 //

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