Book Title: Shrut Ratna Ratnakar
Author(s): Pradyumnavijay
Publisher: Syadwad Prakashan Mandir Trust

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Page 39
________________ श्रुत रत्नरत्नाकरे हासेण व कोहेण व लोहेण भएण वावि तमसञ्चं / . . मा भणसु भणसु सच्चं जीवहिअत्थं पसत्थमिणं // 98 // विस्ससणिज्जो माया व होइ पुज्जो गुरुव्व लोअस्स / सयणुव्व सञ्चवाई पुरिसो सव्वस्स होइ पिओ // 19 // होउ व जडी सिहंडी मुंडी वा वक्कली व नग्गो वा। लोए असञ्चवाई भन्नइ पासंडचंडालो // 10 // अलिअं सइंपि भणि विहणइ बहुआई सच्चवयणाई। पडिओ नरयंमि वसू इक्केण असञ्चवयणेणं // 101 // मा कुणसु धीर ! बुद्धिं अप्पं व बहुं व परधगं घित्तुं / दंतंतर-सोहणयं किलिंचमित्तंपि अविदिन्नं // 102 // जो पुण अत्थं अवहरइ तस्स सो जीविअंपि अवहरइ / जं सो अत्थकएणं उज्झइ जी न उण अत्थं // 103 // तो जीवदयापरमं धम्म गहिऊण गिण्ह माऽदिन्नं / जिण-गणहर-पडिसिद्ध लोगविरुद्धं अहम्मं च // 14 // चोरो परलोगमिऽवि नारयतिरिएसु लहइ दुक्खाई / मणुअत्तणेवि दीणो दारिद्दोबहुओ होइ // 105 // चोरिकनिवित्तीए सावयपुत्तो जहा सुहं लहई / किढि मोरपिच्छचित्तिअ गुट्ठीचोराण चलणेसु // 106 // रक्खाहि बंभचरं बंभगुत्तीहिं नवहिं परिसुद्धं / निचं जिणाहि कामं दोसपकामं विआणित्ता // 10 // जावइआ किर दोसा इहपरलोए दुहावहा हुंति / . आवहइ ते उ सव्वे मेहुणसन्ना मणूसस्स // 108 // .

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