Book Title: Shrut Ratna Ratnakar
Author(s): Pradyumnavijay
Publisher: Syadwad Prakashan Mandir Trust

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Page 116
________________ धम्मरयणपगरणं (7) दुहरूवं दुक्खफलं दुहाणुबन्धि विडंबणारूवं / संसारमसारं जाणिऊण न रइं तहिं कुणइ // 63 // खगमेत्तसुहे विसए विसोवमाणे सयावि मन्नतो / न करेइ गिद्धिं भवभीरू मुणियतत्तत्थो // 4 // वज्जइ तिव्वारंभं कुणइ अकामो अनिव्वहंतो उ / थुणइ निरारंभजणं दयालुओ सव्वजीवेसु // 65 // गिहवासं पासं पिव मन्नंतो बसइ दुक्खिओ तंमि / चारित्तमोहणिज्जं निजिणिउं उज्जमं कुणइ // 66 // अस्थिक्कभावकलिओ पभावणा वन्नवायमाईहिं / गुरुभत्तिजुओ धीमं धरे सइ ईसणं विमलं // 6 // गड्डरिगपवाहेणं गयाणुगइयं जणं वियाणतो / परिहरइ लोगसन्नं सुसमिक्खियकारओ धीरो // 68 // नत्थि परलोगमग्गे पमाणमन्नं जिणागमं मोत्तुं / आगमपुरस्सरं चिय करेइ तो सव्वकिच्चाई // 69 // अनिगूहितो सत्तिं आयाबाहाए जह बहुं कुणइ / आयरइ तहा सुमई दाणाइचव्विहं धम्मं // 7 // हियमणवजं किरियं चिंतामणिरयणदुल्लहं लहिउँ / सम्मं समायरंतो न हु लज्जइ मुद्धहसिओवि // 71 // देहटिइ-निबंधण-धण-सयणाहार-गेहमाईसु / निवसइ अरत्तदुट्ठो संसारगएसु भावेसु // 72 // उवसमसारवियारो वाहिजइ नेय रागदोसेहिं / मज्झत्थो हियकामी असग्गहं सव्वहा चयइ // 73 //

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