Book Title: Shrut Ratna Ratnakar
Author(s): Pradyumnavijay
Publisher: Syadwad Prakashan Mandir Trust

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Page 112
________________ धम्मरयणपगरणं (7) गुणरागी गुणवंते बहु मन्नइ निग्गुणे उबेहेइ / गुणसंगहे पवत्तइ संपत्तगुणं न मयलेइ // 19 // नासइ विवेगरयणं असुहकहासंगकलुसियमणस्स / धम्मो विवेगसारोत्ति सक्कहो होज्ज धम्मत्थी // 20 // अणुकूल धम्मसीलो सुसमायारो य परियणो जरस / एस सुपक्खो धम्मं निरंतरायं तरइ काउं // 21 // आढवइ दीहदंसी सयलं परिणामसुंदरं कन्जं / बहुलाभमप्पकेसं सलाहणिज्जं बहुजणाणं // 22 // वत्थूणं गुणदोसे लक्खेइ अपक्खवायभावेण / पारण विसेसन्नू उत्तमधम्मारिहो तेण // 23 // वुड्ढो परिणयबुद्धी पावायारे पवत्तई नेय / वुड्ढाणुगोवि एवं संसग्गिकया गुणा जेण // 24 // विणओ सव्वगुणाणं मूलं सन्नाणदंसणाईणं / मोक्खस्स य ते मूलं तेण विणीओ इह पसत्थो // 25 // बहु मन्नइ धम्मगुरुं परमुवयारित्ति तत्तबुद्धीए / तत्तो गुणाण वुड्ढी गुणारिहो तेणिह कयन्नू // 26 // परिहियनिरओ धन्नो सम्मं विनायधम्मसब्भावो / अन्नेवि ठवइ मग्गे निरीहचित्तो महासत्तो // 25 // लक्खेइ लद्वलक्खो सुहेण सयलंपि धम्मकरणिज्ज / दक्खो सुसासगिज्जो तुरियं च सुसिक्खिओ होइ // 28 // एए इगवीसगुणा सुयाणुसारेण किंचि वक्खाया। अरिहंति धम्मरयणं घेत्तुं एएहि संपन्ना // 29 //

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