Book Title: Shraddhdin Krutya Sutram
Author(s): Rajshekharsuri
Publisher: Arihant Aradhak Trust
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श्राद्धदिन० ।।१२०॥
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जइवि य फासुयदळ, कुंथू पणगा तहवि दुप्पस्सा | पच्चक्खनाणिणो विह, राईभत्तं परिहरंति ||१|| जइ विहु पिपीलिआई, दीसंति पईवमाइउज्जोए । तह वि खलु अणाइन्नं मूलवयविराहणा जेण ||२|| २२८|| निशाभोजिनां दृष्टान्तद्वारेणापायं दर्शयति
निसिं जे नहि वज्जंति, बाला कुग्गहमोहिया ।
एलगच्छुब्ब दुक्खाई, लहंते मरुओ जहा ।।२२९।। व्याख्या-'निसिं जे०' निशामित्युपचारान्निशाभोजनं ये न वर्जयन्ति बालाः- सदसद्विवेकविकलाः बालत्वमेव व्यक्तीकुर्वन्नाह कुग्रहेण- निशाभोजनविषयेऽसद्ग्रहेण मोहिता- गृद्धिं ग्राहिता ते, किमित्याह- एलकाक्षमरुकवद् दुःखानि लभन्त इत्यक्षरार्थः । भावार्थस्तु कथातोऽवसेयः । सा चेयम्- इह भरते दशार्णपुरे धनसार्थवाहधनवत्योः सुता धनश्रीमिथ्याष्टिधनदेवेन परिणीतापि श्राद्धधर्म पत्यौ हसत्यपि कुरुते, एकदा निशिभक्तस्य दोषान् पत्या पृष्टा । सा तद्दोषान् प्रकटय्य पतिं दिवसचरिमं कारितवती । ततो देवतया कृतधनदेवभगिनीरूपया परीक्षार्थं भोज्ये आनीते, धनश्रिया नियमे स्मारितेऽपि, भोक्तुमुपविष्टश्चपेटया पातितदृग्युगः सोऽभूत् । पन्या कायोत्सर्गतोषितदेवतया पुनर्दततत्कालमारितैडकयुगः प्रातर्जनपृच्छायां कथितस्वव्यतिकरे एडकाक्ष इति प्रसिद्धोऽभूत् ।।
मरुक इति रविगुप्तद्विजस्तत्कथा चेयम्- इह भरते काम्पिल्यपुरे मधुद्विजसुतो वामदेवो निशाभोजी श्रावकमित्रेण जन्ययात्रायां नीतोऽन्तरावासके रात्रौ श्राद्धानुपहसन् स्वार्थपक्चौदनमध्ये धूमार्तपतिताहिपोतविषेण मूर्छित
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