Book Title: Shraddhdin Krutya Sutram
Author(s): Rajshekharsuri
Publisher: Arihant Aradhak Trust
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श्राद्धदिन० ||१४४||
सूत्रम्
रेकानिरेकार्थं भूताचार्यप्रणीतां प्रस्तुतार्थप्रख्यापिका सविशेषार्थप्रतिपादनपरां गाथामाह
पहसंतगिलाणेसु, आगमगाहीसु तहय कयलोए।
उत्तरपारणगंमि य, दिन्नं सुबहुप्फलं होइ ।।२७३।। व्याख्या-'पहसंत०' सुबोधार्था ॥२७३।। साम्प्रतमभिग्रहान्निगमयन् स्वजनानामेव धर्मे स्थिरीकरणार्थं मनष्यत्वादिसामग्रीदुर्लभत्वं प्रस्तावयन्नाह
संखेवेणं एए, अभिग्गहा साहिया मए तुम्ह ।
इण्हि सुणेह तुडमे , जं दुल्लहं इत्थ संसारे ॥२७४।। व्याख्या-'संखेवेणं एए०' सुबोधार्था ||२७४।। एतदेव सूत्राष्टकेन भावयन्नाह
अणोरपारम्मि भवोअहिंमि, उबुड्डनिबुड्ड कुणंतएहिं।
दुक्खेण पत्तं इह माणुसत्तं, तुब्मेहिं रोरेण निहाणभूयं ॥२७५|| व्याख्या-'अणोरपारंमि०' अनर्वाक्पारे- बहयोनिलक्षपरिभ्रमणस्वभावत्वेनाप्राप्यमाणतीर इत्यर्थः, भवश्चातुगतिकः संसारः, स च प्रचुरजन्मजरामरणादिपयःपूरितत्वादधिरिव तस्मिन्, 'उब्बुडनिबुड'त्ति किञ्चित् कर्मलघुतायां त्रसत्वाद्यवाप्त्या उन्मज्जनमिवोच्छलनमिवोन्मज्जनम्, तथाविधकर्मगुतायां च स्थावरत्वाद्यवाप्त्या निमज्ज
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॥१४४॥
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