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पाक कथन
षट्वंडागम आठवें भागके प्रकाशित होनेके दो वर्षसे कुछ अधिक काल पश्चात् यह नौवा भाग पाठकोंके हाथों में पहुंच रहा है । इस समय मुद्रण संबंधी कार्यमें सुविधा उत्पन्न न होकर कठिनाइयां उत्तरोत्तर बढ़ती ही गई हैं, जिनके कारण हम जितने वेगसे प्रकाशन कार्य चलाना चाहते हैं वह संभव नहीं हो पाता । किन्तु हम यही अपना बड़ा सौभाग्य समझते हैं कि कठिनाइयोंके होते हुए भी कार्यको कभी स्थगित करनेकी आवश्यकता नहीं पड़ी, भले ही वह मंदगतिसे चला हो। इस निरन्तर कार्यप्रगतिका श्रेय हमारी इस ग्रंथमालाके संस्थापक श्रीमन्त सेठ शिताबराय लक्ष्मीचंदजी तथा हमारी पंचकमेटीके अन्य सदस्यों एवं मेरे सहयोगी पं. बालचन्द्र जी शास्त्री तथा सरस्वती प्रेसके मैनेजर श्री टी. एम्. पाटीलको है। इस भागके संशोधनमें पूर्ववत् अमरावतीकी हस्तलिखित प्रतिके अतिरिक्त कारंजा महावीराश्रम तथा जैन सिद्धान्त-भवन आराकी प्रतियोंका उपयोग किया गया है। अतएव हम उक्त संस्थानोंके अधिकारियों के बहुत कृतज्ञ हैं। हमें यह प्रकट करते हर्ष होता है कि इस भागके ११३ फार्मसे संशोधन कार्यमें हमें पं. फूलचन्द्रजी शास्त्रीका सहयोग पुनः प्राप्त हो गया है। उन्होंने ४१ वें फार्मसे पूर्वके मुद्रित अंशमें भी अनेक संशोधन सुझाये हैं जिनका समावेश शुद्धि-पत्रमें कर लिया गया है। इस कार्यमें पंडित फूलचन्द्रजीको वीर-सेवा-मंदिर सरसावाकी हस्तलिखित प्रतिका सदुपयोग भी प्राप्त हो गया है। अतएव हम पंडितजी एवं वीर-सेवामंदिरके अधिकारियोंके आभारी हैं ।
श्री पं. रतनचंदजी मुख्तारने जैनसन्देश भाग ११ संख्या ३७-३८ में पुस्तक ८ के मुद्रित पाठोंमें गंभीर अध्ययन पूर्वक अनेक उपयोगी संशोधन प्रस्तुत किये हैं जिनको हम साभार शुद्धि-पत्रमें सम्मिलित कर रहे हैं । कागज आदिकी व्यवस्थामें हमें सदैव ही श्रद्धेय पं. नाथूरामजी प्रेमीसे बहुमूल्य साहाय्य प्राप्त होता रहा है, अतएव हम उनके बहुत कृतम हैं।
मागपुर महाविद्यालय, नागपुर.
1.-११-१९४९
हीरालाल जैन
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