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स्या. क. टीका-हिम्वीविंचन ]
[.०३ ____ अपि च, अज्ञातकरणत्वादप्यमावज्ञानमपरोक्षं स्वीकरणीयम् , ज्ञाताया अनुपलब्धेः करणत्वे ऽनवस्थानात् । न च प्रागनास्तिताबुद्धौ ज्ञातैव सा करणम् , अभावप्रत्यक्षमात्रे प्रतियोगिज्ञानस्याऽहेतुत्वेन गृहसनिकर्षकाले मैत्राऽस्मरणेऽपि तदभावानुभवेन मैत्रस्मरणे सति प्रामास्तिताधियः प्रत्यभिज्ञामात्रत्वात् । अबधानं च तत्रानुपयोगादिकृताभावसभावनानिरासार्थमुपयुज्यते । 'स्मरणाहीस्मरणानुमितसनिकर्षादिकालीनानुपलब्धिलिङ्गकैव प्रामास्तिताघीः' इत्यये । दोषेणाप्यनुपलब्धेरभावरूपाया उपघाताभावादिन्द्रियस्यैव दुष्टत्वोपपत्तेरभावप्रमा( भ्रम)करणत्वा(त्ववोदभावनम(प्रमा करणस्वभपीन्द्रियस्यैव युक्तम् ।
[अज्ञातकरण से जन्य अभावज्ञान की अपरोक्षरूपता] यह भी ज्ञातव्य है कि-'घट आदि के अभाव ज्ञान में घट मादि की अनुपलब्धि स्वयं अज्ञात होकर ही करण होती है। भत: अज्ञातकरण से जन्य होने के नाते अभावज्ञान की अपरोक्षरूपता अनिवार्य है क्योंकि अज्ञातकरणक ज्ञान को ही अपरोक्षशान कहा जाता है। इस दोष के निरासार्थ यह मानना सम्भव नहीं हो सकता कि शात अनुपलब्धि ही अभावशाम का करण है, क्योंकि अनुपलब्धि ज्ञान को अभावज्ञान का करण मानने पर अनवस्था होगी, जैसे घटाभाव के ज्ञानार्थ घटोपलम्भाभाव का मान अपेक्षित है और उस ज्ञान के लिये घटोपसम्भ की अनुपलब्धिउपलम्भाभाव का ज्ञान अपेक्षित है तथा बटोपलम्भ के उपरम्भाभावशान के लिये घटोपलम्भोपलम्भ के उपलम्भाभाष का झान अपेक्षित है । इस प्रकार प्रत्येक उपलम्भान्मक प्रतियोगी के अभायज्ञान में उस के उपलम्भाभावशान की अपेक्षा होने से अनवस्थादोषवश घटानुपलब्धि का शान सामान्य पुरुष के लिये असाध्य हो जायगा । अतः उसे घटाभावज्ञान का जनक मानमा सम्भव नहीं हो सकता !
[ज्ञात अनुपलब्धि करण होने की संभावना का प्रतिक्षेप ] यदि यह कहा जाय कि-"प्राग्नास्तिताबुद्धि में अर्थात् अभाव के प्रथमज्ञान में ज्ञात है। अनुपलब्धि करण होती है। जैसे-जो स्थान आलोफसंयुक्त एवं प्रत्यक्षयोग्य हाता है तथा अनन्यमनस्क पुरुष का मुन्टा ने उस स्थान पर पड़ता है तो वहाँ के घट के विद्यमान होने पर उस का उपलम्भ अवश्य होता है किन्तु जब वैसी स्थिति में भी घट का उपलम्भ नहीं होता तब मनुष्य को यह आपात्मक बुद्धि होती है कि यदि इस स्थान में घट होता तो उस का उपलम्भ अवश्य होता क्योंकि घट और घटेन्द्रिग्रसन्निकर्ष के अतिरिक्त घटोपलम्भ के समस्त कारण विद्यमान हैं। इस आगीपात्मक बुद्धि के फलस्वरूप उसे यह ज्ञान होता है कि यतः यहाँ घट का अनुपलम्भ है अतः यहाँ घट का अभाव है। इस प्रकार घट के अभाव का जो प्रथमशान होता है यह घटानुपलम्भ के ज्ञान से होता है । ऐसा मानने में अनवस्था भी नहीं है क्योंकि घटाभाव के प्रथम कान में ही घटानुपलम्भशान की अपेक्षा है किन्तु इस अपेक्षणीय घटानुपलम्भ के झान में उस के प्रतियोगी घटोपलम्भ की अनुपलब्धि का ज्ञान अपेक्षित नहीं है क्योंकि घटोपलम्भाभाष के ज्ञान का उदय इस प्रणाली से आजभविक
नहीं है कि यदि बटोपलम्भ होता तो उस का उपलम्भ होता, यतः घटोपलम्भ का अनुपलम्भ है अतः घटोपलम्भ का अभाव है।-तो यह कथन उचित नहीं प्रतीत होता क्योंकि अभाव प्रत्यक्षमात्र