Book Title: Shastravartta Samucchaya Part 9 10 11
Author(s): Haribhadrasuri, Badrinath Shukla
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 438
________________ -- ----.mmmww.P.A ... स्या, क. टीका-हिन्दी विवेचन ] [ २७७ भयोस्तत्स्वभावस्वात् , नियतसंकेतसहकृतस्य शब्दस्य सर्वार्थान् प्रत्यविशिष्टत्वाऽसिद्धेश्नतिप्रसङ्गात् , नियतत्वस्य सहकारियोग्यतास्यस्य तन्नियामकधर्मान्तररूपस्य वा कार्यगम्यत्वात् ; अन्यथा चक्रादिसमवहितस्य दण्डादेरपि घटान्यकार्यजननेऽविशिष्टतापत्तेः । 'कतः पुनरेतत् स्वरूपं शब्दादेः' इति पर्यनुयोगे तु 'स्वहेतुप्रतिनियमात् ' इत्युत्तरं न्यायविदः । न चैवं 'पटो घटपदवाच्यः' इति व्यवहारापत्तिः । यथाप्रमात्रादिभेदं तत्सत्त्वेनेष्टत्वात्-अन्यथा च तदभावादेव-पौरुषेयस्य शब्दार्थसंबन्धस्य निरपेक्षत्वाऽसिद्धेः । स्वरूपयोन्यतामादाय सामान्यतः 'घटो घटपदवाच्यः' इति न्यवहारस्तु नामादिभेदभिन्नत्वाद् घटपरिणामस्य , पटादेरपि घटपदवाच्यत्वेन घटत्वावच्छेदेनैव घटवाच्यत्वस्य(१ स्याऽ) साकाऋत्वादिति दिग् ॥२१॥ सभी शब्दों का सभी अर्थों के साथ सङ्केत माना जायगा तो अमुक अर्थ में अमुक शब्द का सङकेत नियत है यह निश्चय करने में कठिनाई होगी-यह शङ्का नहीं की जा सकती । क्योंकि नियतत्व सहकारि योग्यतारूप अथवा सहकारि योग्यता के नियामक अन्य धर्म रूप है , जो अर्थविशेष में विद्यमान शब्द विशेष के सइकेत में ही होता है, यह बात शब्दविशेष से अर्थघिशेष की प्रतीति रूप कार्य से ही शात होती है। सहकारि योग्यता रूप किं या उसका नियामक . अन्य धर्मरूप नियतत्व की कार्य द्वारा ज्ञयता केवल शब्दार्थ के सकेत तक ही सीमित नहीं है किन्तु अन्यतः भी मान्य है । जैसे-- चक्र आदि से सन्निहित दण्ड आदि में ही घट की उत्पत्ति में सहकार करने की योग्यता है। यह बात चक्र आदि से सन्निहित दण्ड आदि से घररूप कार्य की उत्पति से ही ज्ञात होती है। यदि यह बात नहीं मानी जायगी तो उक्त प्रकार के दण्ड आदि में घट से भिन्न पट आदि कार्यों के प्रति भी निर्विशेषता की आपत्ति होने से उन दण्ड आदि से पट आदि की भी उत्पत्ति होने की आपत्ति होगी। यदि यह प्रश्न हो कि शब्द को यह स्वभाव कैसे प्राप्त है , तो इसका उत्तर यह है कि शब्द आदि के उत्पादक कारण द्वारा ही शब्द आदि को यह स्वभाव प्राप्त होता है। अर्थात् न्यायवेत्ताओं के मत के अनुसार शब्न आदि कार्य अपने कारणों से ही तथाविध स्वभाव से विशिए ही इत्पन्न होते है । सभी शब्दों में सभी अर्थों की वाचकता मानने पर, 'पटो घर पद वाच्यः इस व्यवहार की आपत्ति होगी' -इस दोष का भी उद्भावन नहीं हो सकता; क्योंकि जब कभी किसी जगह किसी प्रमाता को घट शब्द से पट का बोध होता है उस समय उस स्थान में उस प्रमाता की दृष्टि मे पट में 'घटपद याच्यत्व' का व्यवहार इष्ट ही है। और अगर किसी भी प्रमाता को ऐसा योध होता नहीं तो वह बोध के अभाव के कारण ही यह श्यवहार की आपत्ति नहीं है । ऐसे प्रमाता के तादृश बोध की विद्यमानता या अविद्यमानता पर ही साहश व्यवहार या उसका अभाव जो होता है इसका कारण यह है कि शब्द और अर्थ का संबन्ध पुरुषमूलक होने से उसमें पुरुष की प्रमा की सापेक्षताही होती है, मिरपेक्षता नहीं। फिर भी सभी शब्दों एवं अर्थों में रद्दी हुई स्वरुपयोग्यता के कारण सामान्यत: पेसा व्यवहार किया जाता है कि सभी अर्थ सभी शयदों से वाध्य है 'घट घट पद से वाच्य है' ऐसा विशेष ज्यवहार तो चटपरिणाम नामादि भेद से भिन्न होने के कारण होता है । उपर जो बता गये कि अगर प्रमाता को घट पदसे घट का बोध होता है तो पट में भी घटपश्वाच्यता का व्यवहार इष्ट ही है, इससे सूचित होता है कि घटपद की बाध्यता घटत्यावच्छेदेन ही साकाङ्क है ऐसा नहीं है ॥ २९ ॥

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