Book Title: Shastravartta Samucchaya Part 9 10 11
Author(s): Haribhadrasuri, Badrinath Shukla
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 489
________________ ३२८ ] शास्त्रवा० स्त० ११/५३.५८ एता वार्ता उपश्रुत्य भावयन् बुद्धिमान्नरः। इहोपन्यम्तशास्त्राणां भावार्थमधिगच्छति ॥५५॥ शतानि सप्त इलोकानामनुष्टुप्छन्दसां कृतः । आचार्यहरिभद्रेण शास्त्रवार्तासमुच्चयः ॥५६|| कृत्वाप्रकरणमेतद् यदवाप्तं किश्चिदिह मया कुशलम् । भवविरबीजमन लभतां भव्यो जनस्तेन ॥५७|| यं बुद्धं बोधयन्तः शिखि-जल-मरुतस्तुष्टुवुलोकवृत्त्य ज्ञानं यत्रोदपादि प्रतिहत्तभुवनालोकवन्ध्यत्वहेतु । सर्वप्राणिस्वभाषापरिणतिसुभगं कौशलं यस्य वाचा तस्मिन् देवाधिदेवे भगवति भवता धीयतां भक्तिरागः ॥५८॥ समाप्तः शास्त्रवार्तासमुच्चयग्रन्थः इस प्रकार उक्त रीमि सेमी का मोक्ष सिद्ध हो जाने पर सिद्धों के पन्द्रह भेद की सिद्धि निर्वाधरूप से सम्पन्न होती है । यह पर्चा प्रासङ्गिकार से की गयी है । जो कुछ विचार इस सम्बन्ध में प्रस्तुत लुभा है. यह सर्वथा समुज्वल है। मूल अन्ध के रचयिता श्री हरिभद्रसरिजी ने ग्रन्थ के अन्त में चार श्लोकों से ग्रन्थ का उपमहार प्रस्तुत किया है। उनमें उनका कहना है कि इस ग्रन्थ में शास्त्रों के सम्बन्ध में जो बातें कही गयी है, बुद्धिमान मनुष्य उनको भावना द्वारा इस अन्य के उपन्यम्त सभी शाम्रों के भावार्थ को अवगत कर सकता है। यह भी उन्होंने कहा है कि अनुष्टुप छन्द के ७०० (सातसो। इलोकों में उन्होंने इस शाम्बवार्ता सम्मय' ग्रन्धकी रचना की है। ग्रन्थकार ने यह भी अपनी उत्कृष्टतम भावना प्रकट की है कि इस प्रकरण अन्य की रचना से जो कुछ पुष्य उन्हें प्राप्त हुआ है उससे भव्य मनुष्यों को पेसा बोध प्राप्त हो जो उनकी संसानिवृत्ति का निदोष बीज बन सके ।।। ५-६-१७ || अन्तिम श्लोक में उन्होंने भव्यमनुष्यों से यह मार्मिक निवेदन किया है कि जिस बुद्धज्ञानमूर्ति महापुरुष को सम्बोधित करते हुए अग्नि जल और वायु ने ग्दोकहित के लिए उसकी स्तुति की है, और जिस पुरुर में भुवनालोक को निरर्थक बनाने वाले कारण का प्रतिघाती ज्ञान प्रादुर्भत हुआ है और जिस की वाणी का कौशल अपनी अपनी भाषा की परिणति में सभी प्राणियों को सुन्दर सहायक है, उस देवाधिदेव भगवान में भक्तिगग धारण करना भव्य मानय का परमकर्तव्य है ।। ५८ ॥ इति । _ [इन चार श्लोकों के उपर कोई भी प्रति में स्था० का व्याख्या उपलब्ध नहीं है और व्याख्याकारकृत प्रशस्ति भी अनुपलब्ध है।] ।। ग्यारहवा स्तबक सम्पूर्ण ।। ।। शास्त्रवार्तासमुच्चय ग्रन्थ सम्पूर्ण ॥ ॥ हिन्दी विवेचन सम्पूर्ण ॥

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