Book Title: Shastravartta Samucchaya Part 9 10 11
Author(s): Haribhadrasuri, Badrinath Shukla
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 472
________________ स्या. क. टीका-हिन्दीविवेचन ] [ ३११ किञ्च, स्तन-जघनादिस्याकारयोगित्वरूपस्त्रीत्य-हेतुविपर्यये बाधकपमाणाभावात् संदिग्धविपक्षव्यावृत्तिकत्वादनैकान्तिकः । न च पक्षीययभिचारसंशयस्यानुमितिप्रतिबन्धकत्वेऽनुमानमात्रोच्छेद इति शङ्कनीयम् , स्वारसिकस्य सस्याऽतथात्वेऽप्यप्रयोजकत्वाहितस्यान्वयव्यतिरेकाभ्यो प्रतिबन्धकरवाऽवधारणात् । एतेन 'स्त्रीत्वपर्यायकालायच्छेदेन स्त्रीत्वावच्छिन्ने मुक्त्ययोगित्वसाधने न दोषः, पक्षतावच्छेदकावच्छेदेन साध्यसिद्धावंशतःसिद्धसाधनम्य 'पृथिवीतरेभ्यो भिद्यते' इत्यादाविवादोषत्वात् ' इत्युक्तावपि न क्षतिः । नन्वेवमपि द्वितीयहेतौ न बाधकम् , पूर्वाध्ययनाभावे सफलफर्मविटपिदयानलकल्पाऽऽद्यशुक्लध्यानद्वयाभावात् , " आये पूर्वविदः' इति वचननामाण्यात् , तदभावे च केवलज्ञानानुत्पत्त्या किया है किन्तु परित्याग नहीं किया है उन्हें पभ किया जाय तो जिन बियों ने अविकल चारित्र प्राप्त नहीं किया है उनकी मुक्ति न होने से उनमें सिह साधन होगा। [ हेतु में संदिग्धविपक्षन्यावृत्तिदोष ] इसके अतिरिक्त यह भी ज्ञातव्य है कि श्रीत्व हेतु का अर्थ है स्त्री सहज स्तन, जघन मादि आकार से युक्त होना । और इसके मोक्षाधिकारी में रहने में कोई बाधक प्रमाण नहीं है | अत: विपक्षल्यावृत्ति का सन्देह होने से स्त्रीत्वहंतु अनेकान्सिक भी है । यदि यह कहा जाय कि-'यह संशय पक्ष में व्यभिचार का संशय है. और ऐसा संशय अनुमिति का प्रतिबन्धक नहीं होता, क्योंकि सशय को अनुमिति का प्रतिबन्धक मानने पर अनुमान मात्र का उच्छेद हो जायगा । यत: पक्ष में साध्यया साध्याभाव का सन्देह रहने से हेतु में विपक्षव्यावृत्ति का सन्देह सर्वत्र सम्भव है। किन्तु यह ठीक नहीं है, क्योंकि हेतु में विपक्षव्यावृत्ति का स्वारसिक सन्देह भले ही अनुमिति का प्रतियन्धक न हो किन्तु अपयोजकत्वम्अनुकुल सर्क के अभाय से हेतु में जो विपक्षावृत्तित्व का सन्देश होता है उसमें अन्वयव्य तिरेक से अनु. मिति की प्रतिबन्धकता निश्चित है। "धूमः अस्तु, बहिर्मास्तु-धृम रहे और अग्नि न रहे" इस अप्रयोजकत्व शङ्का से धूम में अग्नि म्याभिचार का सन्देह होने से अग्नि की अनुमिति का न होना सर्वमान्य है। प्रकृत में भी “अस्तु नीत्वं, मास्तु, मोक्षानधिकाग्विम-स्त्रीत्व हो, मोक्षाधिकारिता का अभाव न हो' इस शङ्का से स्त्रीत्र से मोक्षानधिकारित्व के ध्यभिचार का संशय होने पर स्त्रीत्व हेतु से मोक्षानधिकारित्व की अनुमिति का प्रतिबन्ध होना अनिवार्य है। इसीलिप उक्त सिद्धसाधन दोष का इस प्रकार परिहार करने पर भी कि-"स्त्री आकार रूप पर्यायकाल में मुक्ति की अयोग्यता का अनुमान करने में दोष नहीं होगा, क्योंकि पक्षताश्च्छेदकावच्छेदेन सम्पूर्ण पक्ष में साध्य को भनुमिति में अंशत सिद्रिसाधन दोष नहीं होता यह बात यत्किश्चित् पृथ्वी में पृथ्वीतरभेद की अनुमिति का होना स्वीकार करने से निर्विवाद सिद्ध है ।"-क्षपणक से प्रयुक्त उक्त अनुमान की सदोपता का अभाव नहीं होता, क्योंकि उक्तरीति से सिद्धसाधन दोष का परिहार होने पर भी हेतु की सन्दिग्ध अनेकान्तिकता का दोष बना रहता है। [पूर्वश्रुत के अध्ययन के बिना मोक्षाभाव-पूर्वपक्ष ] यदि यह कहा जाय कि- "स्त्री में मोक्ष की अनधिकारिता के साधनार्थ जो पूर्वाध्ययन लब्धिरूप विशिष्ट योग्यता के अभाषरूप तूमरे हेतु का प्रयोग किया गया है उससे अभिमत

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