Book Title: Shastravartta Samucchaya Part 9 10 11
Author(s): Haribhadrasuri, Badrinath Shukla
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 408
________________ स्था. क. टीका-हिन्दीधिवेशन ] [२४७ नापोह्यत्वमभावानामभावाभाववर्जनात् । व्यक्तोऽपोहान्तरेऽपोहस्तस्मात् सामान्यवस्तुनः ॥ २ ॥ इति । अपिच, अपोहानां परम्परतो वैलक्षप्ये गौशब्दाभिधेयस्य गोनिषेधवलक्षण्याद् भावत्वं स्यात् , अभावनिवृत्तिरूपत्वाद् भावस्य । अवलमण्ये च गौरम्यगोः प्रसज्येत, तदवलक्षण्येन तादात्म्यसिद्धेः । न चानादिकालप्रवृत्तविचिन्नतथार्थविकल्पवासनाभेदाद भिन्ना इवार्थानमान इवास्वभावा अपोहाः समारोप्यन्त इति युक्तम् , अबस्तुनि वासनाऽसंभवात् , वासनातोनिर्विषयप्रत्ययस्याऽयोगात्' इति । तदपि न, अन्यग्रहणमन्तरेणैव प्रतिभासरूपगबावसाये तदनन्तरमगोव्यावृत्तेः सामर्थ्यलग्यत्त्वेऽन्योन्याश्रयाभावात् , परमार्थतः क्वचिदप्यपोहविशिष्टार्थानभिधानेनाधाराधेयभावाद्यनुपपत्ययोगात् , ही समाप्त हो जायगी । श्लोकवात्तिक में कहा भी गया है कि “शब्द के अथाध्य होने से जब व्यक्ति-अपोय नहीं हो सकता, तब सामान्य को ही अपोश कहना होगा, और ऐसा होने पर वही वाच्य हो जाने से उसमें वस्तुत्व की आपत्ति होगी ॥१॥ अपोह भी अपोल नहीं हो सकता क्योंकि अपोडा होने पर अभागात्मक भोट की अभापता ही वर्जित हो जायगी। इसलिए मानना होगा कि पक अश्वादि अपोह में होने वाला गोआदि का अपोह घस्तुभूत सामान्य रूप का ही हो सकता है" ॥ २ ॥ [गोस्व में भावरूपता की प्रसक्ति ] अपोह के प्रतिकूल यह भी एक बात है कि यदि अपोहों में परस्पर भेद होगा तो अगो. निवृत्तिरूप गोत्व में गोनिवृत्तिरूप अगोत्व का भेद होने से अगोनिवृत्तिरूप गोत्व गोनिवृत्ति का निवृत्तिरूप होने से भावरूप हो जायगा, फलत: उसकी अपोहरूपता समाप्त हो जायगी । और यदि अपोहों में परस्पर भेद न होगा तो गोमिवृत्तिरूप अगोत्व और अगोनिवृत्तिरूप गोत्व में ऐक्य होने से अगो में गोरूपता की और गो में अगोरूपता की प्रसक्ति होगी, क्योंकि जिसमें जिस का अवलक्षण्य होता है उसमें उसका तादात्म्य अनिवार्य है। यदि यह कहा जाय कि-जैसे गो और अगो में परस्पर भिन्नता होने की विकल्पबुद्धि से जनित घासनाभेद के कारण उनमें भिन्नता मानी जाती है उसी प्रकार अगों में गोनिवृत्तिरूप अपोह की भावरूप में और गो में अगोनिवृत्तिरूप अपोह की भावरूप में कल्पना की जा सकती है। -तो यह ठीक नहीं है। क्योंकि अवस्तु की कोई बासना नहीं हो सकती। यतः निविषयक यानी अवस्नुविषयक ज्ञान, वासना का हेतु नहीं होता। [ कुमारीलकृत पूर्वपक्ष युक्तियों का निरसन ] ___ अपोह के प्रतिकूल कही गयी उक्त बातों का प्रत्युत्तर देते हुए बौद्ध कहते है कि अगोनिवृत्तिरूप गोत्व को गोशब्द का याच्य मानने में जो अन्योन्याश्रय की आपत्ति दी गयी है वह ठीक नहीं है क्योंकि अगो का ज्ञान न होने की दशा में अगोनिवृत्तिरूप से गो का ज्ञान न होने पर भी गो का प्रतिभासरूप ( गो के विशेषरूप को विषय न करने वाला) सामान्य शान, हो सकता है। और उसके अनन्तर ज्ञाता की अगो में प्रवृत्ति होने के सामर्थ्य से उसमें अगोनिवृत्ति का शान हो सकता है। इस प्रकार अगोनिवृत्तिरूप गोत्व के आश्नयभूत गो के झान में अगो ज्ञान की अपेक्षा न होने से अन्योन्याश्रय की प्रसक्ति नहीं हो सकती ।

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