Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 08
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
________________ // 3 // // 4 // उपाध्यायश्रीसकलचन्द्रगणिविरचितः // श्रुतास्वादः // सिद्धत्थसुयं सिद्धं बुद्धं नमिऊण वीरमरहंतं / देमि नियअप्पसिक्खं विविहसुयस्सायसुहजणयं अप्पसरूवपरिण्णा सुयधरगुरुसेवणा य सुयसवणं / सम्मत्तसुद्धिकरणं मिच्छतावत्तपरिहरणं // 2 // पुव्वकयपुण्णसरणं गुणधरणं सव्वजंतुसुहकरणं / परमप्पझाणजणणं जगजंतुविचित्तयासरणं दुल्लहपयाणुसरणं सुयपढणं सत्तुमित्तसमगणणं / विणयविवेगायरणं वेयावच्चस्स करणं च धम्मोवग्गहदाणं पभावणं धम्मपेरणं चेव / संवेयणनिव्वेयण - बंभव्वयधरणमणुदियह मग्गणठाणविचिंतण तित्थयरत्तस्स ठाणचिंतणयं / कोहकुडंबविडंबण परिग्गहारंभवज्जणयं . // 6 // पढमं अणिच्चचिंतण - मसरणयं एगया य संसरणं / अन्नत्तं असुइत्तं आसवदाराण संवरणं निज्जरण जगसरूवं दुलहा बोही य धम्म सामग्गी। सुहभावणा उ अन्ना न भाविया जेहि तेऽधन्ना // 8 // जिणनमणं जिणभत्ती जिणगुणथुणणं च, तित्थवंदणयं / जिणंहरचेइयठवणं सुसत्तखित्तेसु धणववणं चरणं तवोवहाणं परोवगरणं च विसयविसवमणं / अरिहासायणवज्जण झाणसरूवं च सुहभावो // 10 // सिवगिहमिह सोवाणं भव्वमुणीणं च जंतुगोवाणं / जो आरुहइ कमेणं लहइ पयं सो तिसो(विमो)हाणं // 11 // 249 // 7 // // 9 //
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