Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 08
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 328
________________ // 1 // // 2 // // 3 // // 4 // // 5 // ॥जीवदयाप्रकरणं // संसयतिमिरपयंगं भवियायणकुमुयपुन्निमाइंदं / कामगइंदमइंदं जगजीवहियं जिणं नमिउं पंचमहव्वयगुरुभारधारए पंचसमिइतिहिगुत्ते / नमिऊण सयलसमणे जीवदयापगरणं वुच्छं पालित्तयछदेणं सुत्तं अत्थं च नेय जाणामि / न य वागरणे वि विऊ देसी तह लक्खणं वुच्छं एयारिसयस्स महूं खमियव्वं पंडिएहिं पुरिसेहिं / ऊणाइरित्तयं जं हविज्ज अन्नाणदोसेण मग्गइ सुक्खाइं जणो ताइ य सुक्खाइ हुंति धम्मेण / धम्मो जीवदयाए जीवदया होइ खंतीए. परवंचणानिमित्तं जंपइ अलियाई जणवओ नूणं / जो जीवदयाजुत्तो अलिएण न. सो परं दुहइ तणकटुं व हरंतो दमइ हिययाइं निग्घिणो चोरो। जो हरइ परस्स धणं सो तस्स विलुपए जीवं दव्वे हयम्मि लोओ पीडिज्जइ माणसेण दुक्खेण / धणविरहिओ विसूरइ भुक्खा मरणं च पावेइ एएण कारणेणं जो जीवदयालुओ जणो होई / ' सो न हरइ परदव्वं परपीडं परिहरंतो उ सव्वायरेण रक्खइ निययं दारं च निययसत्तीए / एएण कारणेण दारं लोयाण सव्वस्सं न य तह दूमेइ मणं धणं च धनं जणस्स हीरंतं / जह दूमिज्जइ लोओ नियदारे विद्दविजंते // 6 // // 7 // // 8 // // 9 // // 10 // // 11 // 390

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