Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 08
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
View full book text
________________ // 136 // // 137 // // 138 // // 139 // आमयकारि विसायं मिच्छत्तं कयसणंव ज भुत्तं / तं वमसु विवेगोसहमुव|जिय जीव ! कुसलकए. विसएसु परिभमंतं अइदुस्सहकम्मघम्मपरिसंतं / वीसामसु मणपहियं जिणधम्मतरुम्मि तं जीव! नीरागमणगुरुसरोवराउ गहिऊण देसणासलिलं। . तं कुणसु चित्तनिवसणमवणीयनीसेसदोसमलं रक्खेज्जसु जीव ! तुमं हियए निहिऊण जच्चरयणं व। भवजलहिजाणवत्तं पत्तं पुन्नेण सम्मत्तं , जइ इच्छसि लंघेउं संसारं दुत्तरं पिता कुणसु / तव-नियमसमायारं मायारंभं पमुत्तूण इय सुणिऊण पसत्थं जीव ! तुम जाणिऊण परमत्थं / सुहकज्जेसु पमायं असुहसहायं इमं मुयसु तं जीव ! सुणसु सव्वं फुरंतरोमंचकंचुओ निच्चं / जिणपवयणस्स सारं भाविज्ज मणे नमोक्कारं रइयं पगरणमेयं जिणपवयणसारसंगहेण मया। . सम्मं सम्मत्तवियासडंबरं दिसउ भवियाणं सिरिभिल्लमालनिम्मलकुलसंभवकडुयरायतणएण। इय आसडेण रइयं वसुजलहिदिणेसवरिसम्मि // 140 // // 141 // // 142 // // 143 // // 144 // 318
![](https://s3.us-east-2.wasabisys.com/jainqq-hq/3ad5fa747e38be25d94ae440e283e9ef5707673e202a7e6ea9b3deefc35062eb.jpg)
Page Navigation
1 ... 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346