Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 08
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
View full book text
________________ // 36 // // 37 // // 38 // // 39 // // 40 // // 41 // परमेसरमाईयो ता पिच्छह जाव डुंबचंडाला। . कस्स न जायइ दुक्खं सारीरं माणसं चेव अड्ढा भोगासत्ता दुग्गय पुण पुट्टभरण तल्लिच्छा। तो वि न कुणंति धम्मं, कह पुण सुक्खं जए होउ? दियहं करेइ कम्मं दारिद्दहएहिं पुट्टभरणत्थं / रयणीसु णेय निद्दा चिंताए धम्मरहियाणं मणिधणकणगसमिद्धा धन्ना भुंजंति केइ जे भोगे। ते आसाइय सुक्खं पुणो वि धम्मं चिय कुणंति जे पुण जम्मदरिद्दा दुहिया परपेसरोगमग्घाया।. काऊण ते वि धम्मं दूरं दुक्खाण वच्चंति जो कुणइ मणे खंती जीवदया मद्दवंज्जवं भावं / सो पावइ निव्वाणं न य इंदियलंपडो लोओ जो पहरइ जीवाणं पहरइ सो अत्तणो सगत्तेसु / अप्पाणं जो वइरी दुक्खसहस्साण सो भागी जो कुणइ जणो धम्मं अप्पाणं सो सया सुहं कुणइ। संचयपरो य सुच्चिय संचई सुहसंचयं जेणं जो देइ अभयदाणं सो सुक्खसयाई अप्पणो देइ। जेण न पीडेइ परं तेण न दुक्खं पुणो तस्स जह देउलस्स पीढो खंधो रुक्खस्स होइ आहारो / तह एसा जीवदया, आहारो होइ धम्मस्स जो होइ जणे जोगो तेलुक्के उत्तमाण सुक्खाणं / सो एयं जीवदयं पडिवज्जइ सव्वभावेणं जीवदया सच्चवयणं परधणपरिवज्जणं सुसीलत्तं / खंती पंचिंदियनिग्गहो य धम्मस्स मूलाई // 42 // // 43 // // 44 // // 45 // // 46 // . // 47 // 322
![](https://s3.us-east-2.wasabisys.com/jainqq-hq/67bfc98d233deb44ec72943a38237b749e7e7ebf93f9db6eecadfe17f837ea79.jpg)
Page Navigation
1 ... 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346