Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 08
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 334
________________ // 72 // // 73 // // 74 // // 75 // // 76 // // 77 // जं मइलियचीरनियंसणेहिं सिरलुक्कफुट्टचलणेहिं / परिसक्किज्जइ दीणं आहारं पत्थमाणेहिं जं खाससाससिरवेयणाहिं खयकोढचक्खुरोगेहिं / अट्ठीभंगेहि य वेयणाओ विविहाओ पाविति जं इट्ठविओगकंदणेहिं दुव्वयणदूमियमणेहिं / पिज्जइ लोणंसुजलं दुहमसमं उव्वहंतेहि जं काणा खोडा वामणा य तह चेव रूवपरिहीणा / उप्पज्जति अणंता भोगेहिं विवज्जिया पुरिसा इय जं पावितिह दुहसयाई जणहिययसोसजणयाई / तं जीवदयाए विणा पावाण वियंभियं एवं ते चेव जोणिलक्खा भमियव्वं पुण वि जीव ! संसारे / लहिऊण माणुसत्तं जइ न कुणसि उज्जमं धम्मे नरएसु सुदुस्सहवेयणाओ पत्ताओ जाइं पइ मूढ ! / जइ ताओ सरसि इण्डिं भत्तं पि न रुच्चए तुज्झ अच्छंतु ताव नरया जं दुक्खं गब्भरुहिरमज्झम्मि / पत्तं च वेयणिज्जं तं संपइ तुज्झ वीसरियं भमिऊण गब्भगहणं दुक्खाणि य पाविऊण विविहाई। लब्भइ माणुसजम्मं अणेगभवकोडिदुल्लंभं तत्थ वि य केइ गब्भे मरंति बालत्तणे य तारुन्ने / अन्ने पुण अंधलया जावज्जीवं दुहं तेर्सि अन्ने पुण कोढियया खयवाहीगहिय पंगु मूगा य / दारिदेणऽभिभूया परकम्मकरा नरा बहवे थेवाण होइ दव्वं तम्मि य जलजलणचोरराईहिं। अवहरियम्मि य संते तिव्वयरं जायए दुक्खं // 78 // // 79 // // 80 // // 81 // // 82 // // 83 // 325

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