Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 08
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 330
________________ // 24 // // 25 // // 26 // // 27 // // 28 // // 29 // धम्मं करेह तुरियं धम्मेण य हुंति सव्वसुक्खाई। जीवदयामूलेणं पंचिंदियनिग्गहेणं च जं नाम किंचि दुक्खं नारयतिरियाण तहय मणुयाणं / तं सव्वं पावेणं तम्हा पावे विवज्जेह नरनरवइदेवाणं जं सुक्खं सव्वउत्तमं होइ। तं धम्मेण विढप्पइ तम्हा धम्मं सया कुणह जाणइ जणो मरिज्जइ पिच्छइ लोयं मरंतयं अन्नं / न य कोइ जए अमरो कह तह वि न आयरो धम्मे ? उच्छिना किं नु जरा ? नट्ठा रोगा य किं मयं मरणं ? / ठइयं च नरयदारं जेण जणो ने कुणए धम्म दूसहदुहसंतावं ताव उ पाविति जीव संसारे। . जाव न सुहसत्ताणं सत्ताणं जंति समभावं धम्मो अत्थे कामो अन्नो जे एवमाइया भावा। हरइ हरंतो जीयं अभयं दितो नरो देइ सो दाया सो तवसी सो हि सुही पंडिओ य सो चेव। जो सयलसुक्खबीयं जीवदयं कुणइ खंति च कि पढिएण सुएण व वक्खाणियएणं कांइ किर तेण / जत्थ न विज्जइ एयं परस्स पीडा न कायव्वा . जो धम्मं कुणइ जणो पुज्जिज्जइ सामिउ व्व लोएणं / दासो पेसु व्व जहा परिभूओ अत्थतल्लिच्छो मा कीरउ पाणिवहो मा जंपह मूढ ! अलियवयणाई। मा हरह परधणाई मा परदारे मई कुणह सयणे य धणे तह परियणे य को कुणइ सासया बुद्धी / अणुधावंति कुढेणं रोगा य जरा य मच्चू य - 321 // 30 // // 31 // // 32 // // 33 // // 34 // // 35 //

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