Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 08
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 275
________________ अवणेइ य तंमज्झे विरलं बीयं समागयं पायं / सुमिणु त्ति इमस्सऽत्थो विनेओ दाणपत्ताई - // 24 // कलसा य दुहा एगे पासाओवरिमुहा अलंकिरिया। अन्ने उण भूमीए बोडा ओगालिसयकलिया // 25 // कालेण टलणपायं समभंगुप्पायदिट्ठमप्पाणं / सुमिणसरूवं राया अबंभ साहू य एसत्थो // 26 // बहुजणपवित्तिमित्तं इच्छंतेहिं इहलोइओ चेव। / धम्मो न उज्झियव्वो जेण तर्हि बहुजणपवित्ती // 27 // . ता आणाणुगयं जं तं चेव बुहेण सेवियव्वं तुः। किमिह बहुणा जणेणं ? हंदि न सेअत्थिणो बहुया // 28 // रयणत्थिणु त्ति थोवा तद्दायारो वि जह उ लोयम्मि। इय सुयधम्मरयणत्थिदायगा दढयरं नेया' // 29 // बहुगुणविहवेण जओ एए लब्भंति ता कहमिमेसु / एयदरिद्दाणं तह सुविणे वि पयट्टई चिंता ? // 30 // न य दुक्करं पि अहिगारिणो इहं अहिगयं अणुट्ठाणं / भवदुक्खभया नाणी सुक्खत्थी किंच न करेइ ? // 31 // भवदुक्खं जमणंतं मुक्खसुहं चेव भाविए तत्ते / गरुयं पि अप्पमायं सेवइ न हु अन्नहा नियमा // 32 // साहुपओसी खुड्डो चेइयदव्वोवओगि संकासो / सीयलविहारि देवो एमाई इत्थुदाहरणा // 33 // निट्ठीवणादकरणं असक्कहा अणुचियासणाई य / आययणम्मि अभोगो इत्थं देवा उदाहरणा // 34 // देवहरयम्मि देवा विसयविसविमोहिया वि न कया वि। . अच्छरसाहिं पि समं हासखिड्डाइ वि करिति // 35 // 26

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