Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 08
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
________________ // 84 // असणमप्पत्थण मचिंततणमकित्तणं तुरियं / नारी जणस्स सुहयं हवेइ वेरग्ग धारिणं विभूसियाहिं देवीहिं वित्तो खोहिउं न सक्काय / तहवि हु एगंत हियम्मिय नाउं विवित्तमासहय // 85 // रूवेसु जो गिद्धिमुवेइ तिव्वं अकालियं पावइ सो विणासं। रागाउरो सो जहवा पयंगो आलोय लोलो समुवेइ मच्चुं // 86 // सद्देसु जो गिद्धिमुवेइ तिव्वं अकालियं पावइ सो विणासं / रागाउरो जो हरिणु व्व गिद्धो सद्दे अतित्तो समुवेइ मच्चुं // 87 / / गंधस्स जो मिद्धिमुवेइ तिव्वं अकालिकं पावइ स विणासं। रागाउरो ओसहिगंधगिद्धो सप्पो बिलाओविय निक्खमंतो // 88 // रसस्स जो गिद्धिमुवेइ तिव्वं अकालियं पावइ सो विणासं / रागाउरो बिडिसविभिन्नकाओ मच्छो जहा आमिसभोग गिद्धो // 89 // फासस्स जो गिद्धिमुवेइ तिव्वं अकालियं पावइ सो विणासं। रागाउरे सीयजलाववण्णे गाहग्गहीए महिसेव रण्णे // 90 // एसुविरत्तो मणुओ विसोगो एतेण दुक्खोह परंपरेण / न लिप्पइ भवमझे वसंतो जले जहा उप्पलिणीपलासं // 91 // अंकुसकसार (ज्जु) बंधण छेयणपमुहाई उवद्दवसयाई / तिरियाय परवसेणं सहंति ही कम्म-उदयेण // 92 // मा वयह कडुयवयणं परमम्मं मा कहेह कइया वि। परगुण धणंच पासिय कया वि मा मच्छरं वहह // 93 // मा रुसह मा तुसह कस्स वि उवरि विरग्गसंलीणो। अप्पा रंजण निढो समाहि हरयम्मि मज्जेह // 94 // बहिरमज्झंतरियं परिग्गहं परिहरह भो भव्वा / वेरग्गा दिणयरेणं परिगह तम संचयं हणह // 95 // 25
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