Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 08
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
View full book text
________________ सूरि ति विहिजिणहरि वक्खाणहि तहिं जे अविहि उस्सुत्तु न आणहिं। नंदिपइट्ठह ते अहिगारिय सूरि वि जे तदवरि ते वारिय. // 40 // एगु जुगप्पहाणु गुरु मन्नहिं जो जिण गणिगुरु पवयणि वन्नहिं / / तासु सीसि गुणसिंगु समुट्ठइ पवयणुकज्जु जु साहइ लट्ठइ / // 41 // सो छउमत्थु वि जाणइ सव्वइ जिणगुरुसमइपसाइण भव्वइ। चलइ न पाइण तेण जु दिट्ठउ जं जि निकाइउ त परि विणट्ठउ // 42 // . जिणपवयणभत्तउ जो सक्नु वि तसु पयचित करइ बहु वक्कु वि जसु। न कसाइहि मणु पीडिज्जइ तेण सु देविहि वि ईडिज्जइ // 43 // . सुगुरुआण मणि सइ जसु निवसइ जसु तत्तत्थि चित्त पुणु पविसइ। जो नाइण कु वि जिण वि न सक्कइ जो परवाइभइण नोसक्कइ // 44 // जसु चरिइण गुणिचित्तु चमक्कइ तसु जुन सहइ सु दूरि निलुक्कइ। जसु परिचित करहिं जे देवय तसु समचित्त-ति थोवा सेवय // 45 // तसु निसि दिवसि चिंत इह (य) वट्टइ कहिं वि ठावि जिणपवयणुफिटइ। भूरि भवंता दीसहि बोडा जे सु पसंसहि ते परि थोडा // 46 // पिच्छहि ते तसु पइ पइ पाणिउ तसु असंतु दुहु ढोयहिं आणिउं। धम्मपसाइण सो परि छुट्टइ सव्वत्थ वि सुहकज्जि पयट्टइ // 47 // तह वि हु ताहि वि सो न वि रूसइ खम न सु मिल्लइ न वि ते दूसइ। जइ ति वि आवहि तो संभासइ जुत्तु तदुत्तु वि निसुणि वि तूसइ // 48 अप्पु अणप्पु वि न सु बहु मनइ थोवगुणु वि परु पिच्छ वि वनइ। एइ वि जइ तरंति भवसायरु ता अणुवत्तउ निच्चु वि सायरु // 49 // जुगुपहाणु गुरु इउ परि चिंतइ तंमूलि वि तंमण सु निकितइ। . लोउ लोयवत्ताणइ भग्गउ तासु न दंसणु पिच्छइ नग्गउ // 50 // इह गुरु केहि वि लोइहि वन्निउ तु वि अम्हारइ संघि न मन्निउ। अम्हि केम इसु पुट्ठिहि लग्गह? अन्निहि जिव किव नियगुरु मिल्लह ? 300
Page Navigation
1 ... 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346