Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 08
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
________________ पियमायभाय परियण जणेसु पासंतएसु रे जीव। जममंदिरं नीओ अत्ताणो सकय कम्मेहं // 24 // जइसुत्तो ता भुत्तो कालपिसाएण गसियलोएण। मा मा वीसहसु तुमं रागद्दोसाण सत्तूण // 25 // गहिऊण सव्व विरइं अणुव्वयाइं च चत्तु मिच्छेसि / विसयवसेण कायर इयलज्जा, तुज्झ अइगरुई . // 26 // परिहर कुमित्तसंगं जस्स य संगाओ हवसि चलचित्तो / वाएण हीरमाणो दुमु व्व कुरु साहु संसग्गं' // 27 // कारागिहम्मि वासो सीसे घाओ वि होउ खग्गस्स। लग्गउ मम्मे बाणो मा संगो होउ कुगुरुस्स // 28 // वरनाण किरिय चकं तवनियम तुरंगमेहिं परिजुत्तं / संवेगरहं आरुहिय वच्चह निव्वाण वरणयरं // 29 // दुक्खमहाविसवल्लिं भूरिभव भभण पावतरु चडियं / वेरग्ग काल करवाल. तिक्खधाराहिं कप्पेसु // 30 // संवेग महाकुंजर खंधे चडिऊण गहि वि तवचक्कं / घणकम्म रायसेणं निद्दलह समाहिमणुहवह // 31 // पंचिंदियचलतुरए पइदिवसं कुप्पहम्मि धावंते / सुयरज्जुणा निगिहिय बंधह वेरग संकुम्मि // 32 // अप्पासराओ जाए दंसण वित्थिण नाण परिकलिए। वेरग्ग-महापउमे समाहि भसलो झुणझुणउ // 33 // जइ सुद्धभावणाए जीवपुरिसेण पत्थिओ होइ। संवेग कप्परुक्खो किं किं न हु वंछियं देइ // 34 // दोस सय गागरीणं विरत्त विसवल्लरीण नारीण। जइ इच्छह संवेगं ता संगं चयय तिविहेण - // 35 // 20
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